Friday, 8 May 2015

हिन्दू धर्म के 29 ऐसे रहस्य, जो अनसुलझे हैं - भाग 5

हिन्दू धर्म के 29 ऐसे रहस्य, जो अनसुलझे हैं - भाग 4 से आगे....
सम्राट अशोक के 9 रहस्यमय रत्न : 9 रत्न रखने की परंपरा की शुरुआत सम्राट अशोक और राजा  विक्रमादित्य से मानी जाती है। उनके ही अनुसार बाद के राजाओं ने भी इस परंपरा को निभाया। अकबर ने अपने दबार में 9 रत्नों की नियुक्ति की थी। कुछ लोग कहते हैं कि अशोक के साथ ऐसे 9 लोग थे, जो उनको निर्देश देते थे जिनके निर्देश और सहयोग के बल पर ही अशोक ने महान कार्यों को अंजाम दिया। ये 9 लोग कौन थे इसका रहस्य आज भी बरकरार है। क्या वे मनुष्य थे या देवता?

सम्राट अशोक को 'देवानांप्रिय' अशोक मौर्य सम्राट कहा जाता था। देवानांप्रिय का अर्थ देवताओं का प्रिय। ऐसी उपाधि भारत के किसी अन्य सम्राट के नाम के आगे नहीं लगाई गई। अब सवाल यह उठता है कि सम्राट अशोक के साथ वे कौन 9 लोग थे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनमें से प्रत्येक के पास अपने-अपने ज्ञान की विशेषता थी अर्थात उनमें से प्रत्येक विशेष ज्ञान से युक्त था और अंत में सम्राट अशोक ने उनके ज्ञान को दुनिया से छुपाकर रखा। वे ही लोग थे जिन्होंने बड़े-बड़े स्तूप बनवाए और जिन्होंने विज्ञान और तकनालॉजी में भी भारत को समृद्ध बनाया। कहा जाता है कि उनके ज्ञान को एक पुस्तक के रूप से संग्रहीत किया गया था। जिस पुस्तक को किसी विशेष व्यक्ति को सुपुर्द किया गया, उसने पीढ़ी-दर-पीढ़ी उस पुस्तक या उसके ज्ञान को आगे फैलाया। हालांकि यह रहस्य आज भी बरकरार है।

क्या रावण के दस सिर थे? सचमुच यह एक रहस्यमय बात ही है कि किसी के 3, 4 या 10 सिर हों। भगवान दत्तात्रेय के 3, ब्रह्माजी के 4 और रावण के 10 सिर थे। 'रावण'... दुनिया में इस नाम का दूसरा कोई व्यक्ति नहीं है। राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नहीं। रावण तो सिर्फ रावण है। राजाधिराज लंकाधिपति महाराज रावण को 'दशानन' भी कहते हैं। कहते हैं कि रावण लंका का तमिल राजा था।

जैन शास्त्रों में रावण को प्रति‍-नारायण माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती की जाती है। जैन पुराणों के अनुसार महापंडित रावण आगामी चौबीसी में तीर्थंकर की सूची में भगवान महावीर की तरह 24वें तीर्थंकर के रूप में मान्य होंगे इसीलिए कुछ प्रसिद्ध प्राचीन जैन तीर्थस्थलों पर उनकी मूर्तियां भी प्रतिष्ठित हैं।
क्या रावण के 10 सिर थे? : कहते हैं रावण के 10 सिर थे। क्या सचमुच यह सही है? कुछ विद्वान मानते हैं कि रावण के 10 सिर नहीं थे किंतु वह 10 सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। कुछ विद्वानों के अनुसार रावण 6 दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके 10 सिर मान लिए गए।
जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार 9 मणियां होती थीं। उक्त 9 मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके 10 सिर होने का भ्रम होता था।
हालांकि ज्यादातर विद्वान और पुराणों के अनुसार तो यही सही है कि रावण एक मायावी व्यक्ति था, जो अपनी माया द्वारा 10 सिर होने का भ्रम पैदा कर सकता था। उसकी मायावी शक्ति और जादू के चर्चे जगप्रसिद्ध थे।
रावण के 10 सिर होने की चर्चा रामचरित मानस में आती है। वह कृष्ण पक्ष की अमावस्या को युद्ध के लिए चला था तथा 1-1 दिन क्रमशः 1-1 सिर कटते थे। इस तरह 10वें दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की दशमी को रावण का वध हुआ इसीलिए दशमी के दिन रावण दहन किया जाता है।
रामचरित मानस में वर्णन आता है कि जिस सिर को राम अपने बाण से काट देते थे पुनः उसके स्थान पर दूसरा सिर उभर आता था। विचार करने की बात है कि क्या एक अंग के कट जाने पर वहां पुनः नया अंग उत्पन्न हो सकता है? वस्तुतः रावण के ये सिर कृत्रिम थे- आसुरी माया से बने हुए।
मारीच का चांदी के बिन्दुओं से युक्त स्वर्ण मृग बन जाना, रावण का सीता के समक्ष राम का कटा हुआ सिर रखना आदि से सिद्ध होता है कि राक्षस मायावी थे। वे अनेक प्रकार के इन्द्रजाल (जादू) जानते थे। तो रावण के 10 सिर और 20 हाथों को भी मायावी या कृत्रिम माना जा सकता है।

आत्मा या प्राण का कहीं और होना : वैसे कहा जाता है कि हमारी आत्मा का वास दोनों भोहों के बीच भृकुटी में रहता है। लेकिन हमने पुराणों और अन्य ग्रंथों में पढ़ा है कि कुछ लोगों, पशुओं या पक्षियों का प्राण या जीव अन्य कहीं होता था, जैसे किसी राक्षस की जान तोते में थी। अब जब तक तोते को नहीं मारो तो राक्षस को मारना असंभव था। उसी तरह रावण की जान नाभि में थी। क्या ऐसा भी संभव हो सकता है? 
soul
ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमरत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई। यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया। हालांकि रावण की जान तो नाभि में थी लेकिन हमने पढ़ा है कि कई दैत्यों, दानवों, राक्षसों आदि की जान उनके खुद के शरीर से बाहर कहीं ओर सुरक्षित रखी होती थी। राक्षस की जान तोते में थी। तोते की गर्दन मोड़ो तो राक्षस की गर्दन मुड़ जाती थी।

यति : बिगफुट कर रहा है मानव की तबाही का इंतजार, क्योंकि वही है धरती की असली प्राकृतिक प्रजाति। आज का इंसान तो 'स्टार प्रॉडक्ट' है जबकि बिगफुट से इंसानों ने धरती को छीन लिया और उन्हें छुपने पर मजबूर कर दिया? आधुनिक जीव वैज्ञानिक तो यही मानते हैं। पूरे विश्व में इन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तिब्बत और नेपाल में इन्हें 'येती' का नाम दिया जाता है तो ऑस्ट्रेलिया में 'योवी' के नाम से जाना जाता है। भारत में इसे 'यति' कहते हैं।

यति मानव का वर्णन पुराणों और अन्य भारतीय ग्रंथों में बहुत मिलता है। कहते हैं कि वे हिमालय में कहीं रहते हैं और बहुत कम ही लोगों को दिखाई देते हैं। हालांकि अब तक उनके होने की पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन कई लोग उनको देखे जाने का दावा करते हैं। भारत के कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, अरुणाचल आदि राज्यों के लोग उनको देखे जाने का दावा करते आए हैं। नेपाल और तिब्बत के लोग भी यति मानव के होने में विश्वास करते हैं।

हवाखोरी का रहस्य क्या है? : आज भी भारत की धरती पर ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने कई वर्षों से भोजन नहीं किया, लेकिन वे सूर्य योग के बल पर आज भी स्वस्थ और जिंदा हैं। भूख और प्यास से मुक्त सिर्फ सूर्य के प्रकाश के बल पर वे जिंदा हैं।

प्राचीनकाल में ऐसे कई सूर्य साधक थे, जो सूर्य उपासना के बल पर भूख-प्यास से मुक्त ही नहीं रहते थे बल्कि सूर्य की शक्ति से इतनी ऊर्जा हासिल कर लेते थे कि वे किसी भी प्रकार का चमत्कार कर सकते थे। उनमें से ही एक सुग्रीव के भाई बालि का नाम भी लिया जाता है। बालि में ऐसी शक्ति थी कि वह जिससे भी लड़ता था तो उसकी आधी शक्ति छीन लेता था।
वर्तमान युग में प्रहलाद जानी इस बाद का पुख्ता उदाहरण है कि बगैर खाए-पीए व्यक्ति जिंदगी गुजार सकता है। गुजरात में मेहसाणा जिले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गए हैं जिसने विज्ञान को चौतरफा चक्कर में डाल दिया है। वैज्ञानिक समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो रहा है?

दोस्तों  आपको ये ब्लॉग कैसा लगता है। कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा। जिससे मुझे प्रोत्साहन मिलता रहे

2 comments:

  1. आदरणीय बंधू
    जय श्री राम
    आप सनातन हिन्दू धर्म के लिए एक महान कार्य कर रहे हैं . जो आने वाली पीड़ियों का भी मार्ग दर्शन करता रहेगा , यह एक नि:संदेह देश की एक बड़ी या है . ईश्वर आपको बल एवं सामर्थ्य प्रदान करें .
    जय जय श्री राम

    ReplyDelete
    Replies
    1. bahut hi rochak lage mujhe apke tathya or bahut khushi bhi hui ye jankari paa kar iske liye apka bahut bahut dhanyawad

      Delete