11. परशुराम की कहानी : अश्वत्थामा, हनुमान और विभीषण की भांति परशुराम भी चिरंजीवी हैं। भगवान परशुराम तभी तो राम के काल में भी थे और कृष्ण के काल में भी उनके होने की चर्चा होती है। कल्प के अंत तक वे धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे। परशुराम भृगु वंश से थे।
महाभारत के अनुसार भृगु से वारिणी भृगु ऋषि और वारिणी भृगु के उशनस् शुक्र एवं च्यवन नामक दो पुत्र थे। उनमें से शुक्र एवं उसका परिवार दैत्यों के पक्ष में शामिल होने के कारण नष्ट हो गया। इस प्रकार च्यवन (पत्नी मनुकन्या आरुषि) से और्व, और्व से ऋचीक, ऋचीक से जमदग्नि और जमदग्नि से परशुराम का जन्म हुआ। भृगु ऋषि के च्यवन कुल का संबंध पश्चिमी हिन्दुस्तान के अनार्त प्रदेश से था। उशनस् शुक्र उत्तर भारत के मध्य भाग में थे। परशुराम के बाद इंद्रोत शौनक और प्रचेतन वाल्मीकि का उल्लेख मिलता है।
ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि के पुत्र परशुराम थे। सत्यवती गाधि की पुत्री थी। गाधि राजा कुशिक का पुत्र और विश्वामित्र के पिता थे। ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि के पुत्र परशुराम थे। गाधि राजा कुशिक का पुत्र और विश्वामित्र के पिता थे।
विष्णु के छठे 'आवेश अवतार' परशुराम का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रात्रि के प्रथम प्रहर में भृगु ऋषि के कुल में हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका था। परशुराम भगवान शंकर के परम भक्त थे। उनका वास्तविक नाम राम था किंतु परशु धारण करने से वे परशुराम कहे जाने लगे। भगवान शिव से उन्होंने एक अमोघास्त्र प्राप्त किया था, जो परशु नाम से प्रसिद्ध है। परशुराम के 4 और भाई थे- रुमण्वान, सुषेण, वसु और विश्वावसु। परशुराम 5वें पुत्र थे।
उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। राजा सहस्रबाहु अर्जुन आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। परशुराम ने उक्त राजा सहस्रबाहु का महिष्मती में वध कर ऋषियों को भयमुक्त किया। हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं से उनके युद्ध को आज भी याद किया जाता है। उनका इन राजाओं से 36 बार युद्ध हुआ था और 36 बार ही हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं को पराजित होना पड़ा था। इस दौरान लाखों क्षत्रियों का नाश हो गया था। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए भगवान परशुराम घोर तपस्या में लीन हो गए थे।
12. राम की कहानी : शोधानुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म 5114 ईस्वी पूर्व चैत्र मास की नवमी को हुआ था। अयोध्या के राजा दशरथ के 4 पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र थे भगवान राम। दशरथ की 3 पत्नियां थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। राम के 3 भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। राम कौशल्या के पुत्र थे। सुमित्रा के लक्ष्मण और शत्रुघ्न 2 पुत्र थे। कैकयी के पुत्र का नाम भरत था। भरत को राजसिंहासन पर बैठाने के लिए कैकयी ने दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास मांग लिया था।
लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला, शत्रुघ्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी का नाम मांडवी था। सीता और उर्मिला राजा जनक की पुत्रियां थीं और मांडवी और श्रुतकीर्ति कुशध्वज की पुत्रियां थीं। लक्ष्मण के अंगद तथा चंद्रकेतु नामक 2 पुत्र थे।
राम का विवाह मिथिला के नरेश राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ। सीता स्वयंवर में रावण भी आया था। विवाह बाद कैकयी के कहने पर राम को दशरथ ने 14 वर्ष के लिए वनवास में भेज दिया। वनवास में सीता और लक्ष्मण भी उनके साथ गए। इधर कैकयी ने भरत को अयोध्या का राजा बना दिया।
वनवास के दौरान लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। सीता स्वयंवर में अपनी हार और शूर्पणखा की नाक काटने का बदला लेने के लिए रावण ने सीता का हरण कर लिया। वनवास के दौरान ही राम को सीता से 2 पुत्र प्राप्त हुए- लव और कुश। एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे।
राम ने सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए संपाति, हनुमान, सुग्रीव, विभीषण, मैन्द, द्विविद, जाम्बवंत, नल, नील, तार, अंगद, धूम्र, सुषेण, केसरी, गज, पनस, विनत, रम्भ, शरभ, महाबली कम्पन (गवाक्ष), दधिमुख, गवय और गन्धमादन आदि की सहायता से सेतु बनाया और लंका पर चढ़ाई कर दी। लंका में घोर युद्ध हुआ और पराक्रमी रावण का वध हो गया। तब पुष्पक विमान द्वारा रावण सीता सहित पुन: अयोध्या आ गए।
इस सारे घटनाक्रम में हनुमानजी ने राम का बहुत साथ दिया इसीलिए हनुमानजी राम के अनन्य सहायक और भक्त सिद्ध हुए। भगवान राम को हनुमान ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम : गुरु वशिष्ठ से शिक्षा-दीक्षा लेना, विश्वामित्र के साथ वन में ऋषियों के यज्ञ की रक्षा करना और राक्षसों का वध, राम स्वयंवर, शिव का धनुष तोड़ना, वनवास, केवट से मिलन, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा (वज्रमणि) की नाक काटना, खर और दूषण का वध, लक्ष्मण द्वारा लक्ष्मण रेखा खींचना, स्वर्ण हिरण-मारीच का वध, सीताहरण, जटायु से मिलन।
कबन्ध का वध, शबरी से मिलन, हनुमानजी से मिलन, सुग्रीव से मिलन, दुन्दुभि और बाली का वध, संपाति द्वारा सीता का पता बताना, अशोक वाटिका में हनुमान द्वारा सीता को राम की अंगूठी देना, हनुमान द्वारा लंकादहन, सेतु का निर्माण, लंका में रावण से युद्ध, लक्ष्मण का मूर्छित होना, हनुमान द्वारा संजीवनी लाना और रावण का वध, पुष्पक विमान से अयोध्या आगमन।
राम की जल समाधि : अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा ने उनको संसार से मुक्त हो जाने का आदेश दिया। एक घटना के बाद उन्होंने जल समाधि ले ली थी। पढ़िए समाधि कथा... कितने राम..
13. कृष्ण की कहानी : 'न कोई मरता है और न ही कोई मारता है, सभी निमित्त मात्र हैं... सभी प्राणी जन्म से पहले बिना शरीर के थे, मरने के उपरांत वे बिना शरीर वाले हो जाएंगे। यह तो बीच में ही शरीर वाले देखे जाते हैं,
फिर इनका शोक क्यों करते हो।' -कृष्ण
कृष्ण की कहानी भारत और हिन्दू धर्म की संपूर्ण कहानी है। महाभारत को पढ़ना हिन्दू धर्म और भारत को पढ़ना है। हिन्दू मान्यता अनुसार विष्णु ने 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में 8वें अवतार श्रीकृष्ण के रूप में देवकी के गर्भ से मथुरा के कारागार में जन्म लिया था। उनका जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न में हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में ईसा से लगभग 3200 वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार उस समय शून्य काल (रात 12 बजे) था।
भगवान कृष्ण के जीवन को संपूर्ण जानने के लिए महाभारत, भागवत पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि पढ़ें।
'हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।' -गीता
1. महाभारत के बाद धीरे-धीरे धर्म का केंद्र तक्षशिला (पेशावर) से हटकर मगध के पाटलीपुत्र में आ गया। गर्ग संहिता में महाभारत के बाद के इतिहास का उल्लेख मिलता है। अयोध्या कुल के मनु की 94 पीढ़ी में बृहद्रथ राजा हुए। उनके वंश के राजा क्रमश: सोमाधि, श्रुतश्रव, अयुतायु, निरमित्र, सुकृत्त, बृहत्कर्मन्, सेनाजित, विभु, शुचि, क्षेम, सुव्रत, निवृति, त्रिनेत्र, महासेन, सुमति, अचल, सुनेत्र, सत्यजीत, वीरजीत और अरिञ्जय हुए। इन्होंने मगध पर क्षेम धर्म से पूर्व राज किया था।
4. बृहद्रथ (जरासंध) वंश के रूप में 3233 वि.पू. से रिपुंजय तक 2011 वि.पू. तक चला, शत्रुंजय के समय श्रीकृष्ण वंशी बज्रनाम का राज्य चला, बाद में यादवों के वंश मिथिला, मगध, विदर्भ, गौंडल, जैसलमेर, करौली, काठियावाड़, सतारा, दक्षिण मथुरा पांड्यदेश, पल्लव आदि विभिन्न खंडों में बिखर गए।
5. महाभारत के बाद कुरु वंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।
6. शुनक वंशी प्रद्योत और उसके 5वें वशंधर नंदिवर्धन (1873 वि.पू.)।
14.चंद्रगुप्त, चाणक्य और सम्राट अशोक की कहानी : चंद्रगुप्त और चाणक्य की कहानी उस काल के भारत के संपूर्ण इतिहास को प्रदर्शित करती है इसीलिए सभी भारतवासियों को चाणक्य और चंद्रगुप्त की कहानी के साथ ही सम्राट अशोक की जीवनगाथा का अध्ययन करना चाहिए।
15. विक्रमादित्य की कहानी : चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य अवंतिका के राजा जरूर थे लेकिन उनका शासन संपूर्ण भारत पर था। उन्हीं के नाम पर विक्रमादित्य की उपाधि अन्य राजाओं को दी गई जिसमें चंद्रगुप्त द्वितीय और हेमू थे। विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज से 2286 वर्ष पूर्व हुए थे।
विक्रमादित्य का नाम विक्रम सेन था। नाबोवाहन के पुत्र राजा गंधर्वसेन भी चक्रवर्ती सम्राट थे। गंधर्वसेन के पुत्र विक्रमादित्य और भर्तृहरी थे। कलि काल के 3000 वर्ष बीत जाने पर 101 ईसा पूर्व सम्राट विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 वर्ष तक राज किया। -(गीता प्रेस, गोरखपुर भविष्यपुराण, पृष्ठ 245)।
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