हिन्दू धर्म के 29 ऐसे रहस्य, जो अनसुलझे हैं - भाग 2 से आगे....
वानर प्रजाति : क्या सचमुच रामायण काल में बताए गए अनुसार जामवंत एक रीछ थे और हनुमानजी एक वानर? हालांकि आज भी यह रहस्य बरकरार है। यदि बजरंग बली वानर नहीं होते तो उनको रामायण और रामचरित मानस में कपि, वानर, शाखामृग, प्लवंगम, लोमश और पुच्छधारी कहकर नहीं पुकारा जाता। लंकादहन का वर्णन भी फिर पूंछ से जुड़ा हुआ नहीं होता।
हालांकि कहा जाता है कि कपि नामक एक वानर जाति थी। हनुमानजी उसी जाति के ब्राह्मण थे। हनुमान चालीसा की एक पंक्ति है: को नहि जानत है जग में, 'कपि' संकटमोचन नाम तिहारो।।
कुछ लोग कपि को चिंपांजी के रूप में देखते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार 'कपि प्रजाति' होमिनोइडेया नामक महापरिवार प्राणी जगत की सदस्य जीव जातियों में से एक थी। जीव विज्ञानी कहते हैं कि होमिनोइडेया नामक महापरिवार के प्राणी जगत की 2 प्रमुख जाति शाखाएं थीं जिसमें से प्रथम को 'हीन कपि' कहा जाता था और दूसरी को महाकपि कहा जाता था। हीन कपि अर्थात छोटे कपि और महाकपि अर्थात बड़े आकार के मानवनुमा कपि। महाकपियों की 4 उपशाखाएं हैं- गोरिल्ला, चिंपांजी, मनुष्य तथा ओरंगउटान।
शोधकर्ताओं के अनुसार भारतवर्ष में आज से 9 से 10 लाख वर्ष पूर्व बंदरों की एक ऐसी विलक्षण जाति में विद्यमान थी, जो आज से लगभग 15 हजार वर्ष पूर्व विलुप्त होने लगी थी और रामायण काल के बाद लगभग विलुप्त ही हो गई। इस वानर जाति का नाम 'कपि' था। मानवनुमा यह प्रजाति मुख और पूंछ से बंदर जैसी नजर आती थी। भारत से दुर्भाग्यवश कपि प्रजाति समाप्त हो गई, लेकिन कहा जाता है कि इंडोनेशिया देश के बाली नामक द्वीप में अब भी पुच्छधारी जंगली मनुष्यों का अस्तित्व विद्यमान है।
भौतिक मानव विज्ञानी सिकर्क ने इस बात की घोषणा की है कि उन्हें पश्चिम टेक्सास के एक कब्रिस्तान में नर वानर प्रजाति के नए जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। उनका कहना है कि ये जीवाश्म 43 मिलियन वर्ष पहले के हो सकते हैं और वर्तमान में इनकी तुलना उत्तरी गोलार्ध में पाए जाने वाले मेस्केलोलीमर से की जा सकती है, लेकिन अब मेस्केलोलीमर एक विलुप्त नर वानर समूह है।
हालांकि 1973 में एक जीवाश्म प्राप्त हुआ था जिसकी तुलना इससे की जा रही है। इसके साथ ही माना जा रहा है कि इसका संबंध यूरेशियन और अफ्रीकी प्रजातियों से भी हो सकता है। इससे प्रजातियों के अंत के संबंध में मिल सकती है जानकारी।
टेक्सास विश्वविद्यालय के मानव विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत सिकर्क का इस संबंध में कहना है कि इन जीवाश्मों का संबंध इयोसिन नर वानर समुदाय से भी हो सकता है। यह प्रजाति समय के साथ-साथ धीरे-धीरे विलुप्त हो गई और सबसे पहले ये उत्तरी अमेरिका में समाप्त हुई।
यह जानकारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तरी अमेरिका और पूर्वी एशिया के बीच फ्यूनल विनिमय के सबूत भी पाए गए हैं। कर्क ने बताया कि यह जीवाश्म अनुकूलित प्रजातियों के अंत के संबंध में बहुत कुछ जानकारी दे सकते हैं, क्योंकि यह अमेरिका में उस समय कितनी विविधता थी इस बात के जीते- जागते उदाहरण थे।
क्या हजारों वर्षों तक जीवित रहा जा सकता है? पौराणिक और संस्कृत ग्रंथों के अनुसार भारत में ऐसे कई लोग हैं, जो हजारों वर्षों से जीवित हैं। हिमालय में आज भी ऐसे कई ऋषि और मुनि हैं जिनकी आयु लगभग 600 वर्ष से अधिक बताई जाती है।
श्लोक : अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:।।
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
अर्थात इन 8 लोगों (अश्वथामा, दैत्यराज बलि, वेदव्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सारी बीमारियां समाप्त होती हैं और मनुष्य 100 वर्ष की आयु को प्राप्त करता है। अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम- ये सभी चिरंजीवी हैं।
पुराणों के अनुसार अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि के अलावा अन्य कई ऐसे लोग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे आज भी जीवित हैं। यह संभव है कि कोई व्यक्ति हजारों वर्ष तक जीवित रह सकता है। आयुर्वेदानुसार मनुष्य की आयु लगभग 120 वर्ष बताई गई है लेकिन वह अपने योगबल से लगभग 150 वर्षों से ज्यादा जी सकता है। कहते हैं कि प्राचीन मानव की सामान्य उम्र 300 से 400 वर्ष हुआ करती थी, क्योंकि तब धरती का वातावरण व्यक्ति को उक्त काल तक जिंदा बनाए रखने के लिए था।
कौरवों का जन्म एक रहस्य : कौरवों को कौन नहीं जानता? धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और 1 पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव 100 हो गए। युयुत्सु ऐनवक्त पर कौरवों की सेना को छोड़कर पांडवों की सेना में शामिल हो गया था।
गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया। गर्भधारण कर लेने के पश्चात भी 2 वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।
वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही 100 कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'
वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिंड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिंड के अंगूठे के पोरुये के बराबर 100 टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए 100 कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को 2 वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। 2 वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक 1 कन्या का जन्म हुआ।
अब सवाल उठता है कि क्या ऐसा हुआ था? ऐसा कैसे संभव है? आजकल टेस्ट ट्यूब बेबी के बारे में जरूर सुनते हैं लेकिन 99 पुत्रों का एकसाथ जन्म सचमुच एक रहस्य ही है।
क्या इच्छामृत्यु प्राप्त की जा सकती है? भीष्म पितामह के बारे में कहा जाता है कि उनको इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरु हुए। पुरु के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए। कुरु के वंश में आगे चलकर राजा प्रतीप हुए जिनके दूसरे पुत्र थे शांतनु। शांतनु का बड़ा भाई बचपन में ही शांत हो गया था। शांतनु के गंगा से देवव्रत (भीष्म) हुए। भीष्म ने ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी इसलिए यह वंश आगे नहीं चल सका। भीष्म अंतिम कौरव थे।
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पड़कर बहुत अच्छा लगा | आपकी जानकारी के अनुसार हनुमानजी महावानर जाति व्\गोरिल्ला, चिंपांजी, मनुष्य तथा ओरंगउटानके वंशज थे और अब ये महा कपिल जाति खत्म हो रही है |
ReplyDeleteक्या ऐसा हो सकता है इन महाकपिल जाति में कुछ का सही परवरिश कर उन्हें अच्छे संस्कार की ट्रेनिंग दी जा सके ? जब हम कुत्ते, बिल्ली पाल सकते हैं तो क्यों नहीं महाकपिल जाति के कुछ वानर ?
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:।।
कहते हैं इनके दर्शन के लिए पुट्टपर्ती के सत्यसाईबाबा अपने जीवनकाल में इनके दर्शन हेतु हिमालय की यात्रा की और व्यासीजी के दर्शन किये | इनके एक भक्त अपने पुस्तक में ऐसे लिखें हैं | योग शक्ति ही मानव को सही राह में रख सकती है |
भीष्म पितामह को इच्छानुसार मृत्यु प्राप्त था तभी तो मरने से पहले कृष्णा भगवान के समीप और अर्जुन को आखरी सेवा का मौका देते हुए दाक्षियाँन के अंतिम धडी में शरीर छोड़ गए |
vedic culture of brahmins seen in Sidhpur unique and childhoods sandhya taeching to each street by Sastri without fee, so future boy at young,old age never forget it also force to kids follow the same.
ReplyDeleteblog like yours keeps hindu sanskriti alive.
ReplyDeleteI Like Blogsite
ReplyDeleteHindu philosophystart in recent world high society after fedup on their cosevative religons .and real sence our /sanatan dharm only on earth since rushies ruling in Bharatt
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