Sunday, 3 May 2015

मंदिरों में पूजा के बाद उसकी परिक्रमा का वैज्ञानिकता क्या है -


क्या आप जानते हैं कि.... मंदिरों में पूजा के बाद उसकी परिक्रमा का वैज्ञानिक महत्व एवं उसकी वैज्ञानिकता क्या है....???

असल में .... आज के अंग्रेजी स्कूलों में पढ़कर..... खुद को अत्याधुनिक समझने वाले लोगों की ऐसी सोच होती है कि....

जिस तरह मुस्लिम बिना किसी सर-पैर और वैज्ञानिकता के .... दिन भर मस्जिदों से अजान देकर .......समाज में अकारण ही ध्वनि प्रदूषण फैलाते रहते हैं....

उसी प्रकार , हमारे हिन्दू सनातन धर्म में भी.... मंदिरों में परिक्रमा करना महज एक औपचारिकता भर है..... जबकि, ऐसा नहीं है...!

हकीकत यह है कि.... पूर्ण रूप से एक वैज्ञानिक धर्म होने के कारण.... हमारे हिन्दू सनातन धर्म के एक-एक गतिविधि का ठोस वैज्ञानिक आधार है...!

और चूँकि..... - हर एक सामान्य व्यक्ति को उच्च वैज्ञानिक कारण समझ में आये ऐसा आवश्यक और संभव नहीं हो पाता ....इसीलिए, हमारे ऋषि-मुनियों ने ...उसे रीति-रिवाजों का रूप दे दिया ..... जो आज भी बड़ों के आदेश के रूप में निभाये जाते है.

दरअसल....

वैदिक पद्धति के अनुसार मंदिर वहां बनाना चाहिए जहां से पृथ्वी की चुम्बकीय तरंगे घनी हो कर जाती है .... और, इन मंदिरों में गर्भ गृह में देवताओं की मूर्ति ऐसी जगह पर स्थापित की जाती है. ... तथा, इस मूर्ति के नीचे ताम्बे के पात्र रखे जाते है..... जो यह तरंगे अवशोषित करते है.

इस प्रकार जो व्यक्ति रोज़ मंदिर जा कर इस मूर्ति की घडी के चलने की दिशा में परिक्रमा ( प्रदक्षिणा ) करता है.... वह इस एनर्जी को अवशोषित कर लेता है.

यह एक धीमी प्रक्रिया है और नियमित ऐसा करने से व्यक्ति की सकारात्मक शक्ति का विकास होता है.

और, इसीलिए हमारे मंदिरों को तीन तरफ से बंद बनाया जाता है जिससे इस ऊर्जा का असर बढ़ जाता है.

साथ ही..... मूर्ति के सामने प्रज्वलित दीप उष्मा की ऊर्जा का वितरण करता है.... एवं, घंटियों की ध्वनि तथा लगातार होते रहने वाले मंत्रोच्चार से एक ब्रह्माण्डीय नाद बनती है ...जो, ध्यान केन्द्रित करती है.

यही कारण है कि.... तीर्थ जल मंत्रोच्चार से उपचारित होता है. चुम्बकीय ऊर्जा के घनत्व वाले स्थान में स्थित ताम्रपत्र को स्पर्श करता है और यह तुलसी कपूर मिश्रित होता है... और, इस प्रकार यह दिव्य औषधि बन जाता है...!

ध्यान रहे कि....मंदिर में जाते समय वस्त्र यानी सिर्फ रेशमी पहनने का चलन इसी से शुरू हुआ ....क्योंकि, ये उस ऊर्जा के अवशोषण में सहायक होते है.

इसी कारण.... यह कहा जाता है कि.... मंदिर जाते समय महिलाओं को गहने पहनने चाहिए क्योंकि.... धातु के बने ये गहने ऊर्जा अवशोषित कर उस स्थान और चक्र को पहुंचाते है जैसे गले , कलाई , सिर आदि .

और.... इसीलिए, हमारे हिन्दू सनातन धर्म में ....नए गहनों और वस्तुओं को भी मंदिर की मूर्ति के चरणों से स्पर्श कराकर फिर उपयोग में लाने का रिवाज है ....!

इसीलिए, जागो हिन्दुओं और पहचानो अपने आपको एवं अपने वैज्ञानिकता से भरे रीति-रिवाजों को ....

क्योंकि.... ज्ञान से ही हम हिन्दू ...... मुस्लिमों और सेक्युलरों के नापाक गठजोड़ द्वारा फैलाये अफवाहों को तोड़कर ... उन्हें समुचित जबाब देते हुए.... अपने धर्म तथा देश की रक्षा कर सकते हैं...!!
जय महाकाल...!!!

नोट : भगवन भोलेनाथ की सिर्फ अर्ध परिक्रमा ही की जाती है ... क्योंकि... शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल को नहीं लांघा जाता है...!!

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