जैसे जैन कैवल्य ज्ञान को प्राप्त व्यक्ति को तीर्थंकर या अरिहंत कहते हैं। बौद्ध संबुद्ध कहते हैं वैसे ही हिंदू भगवान कहते हैं। भगवान का अर्थ है जितेंद्रिय। इंद्रियों को जीतने वाला। भगवान का अर्थ ईश्वर नहीं और जितने भी भगवान हैं वे ईश्वर कतई नहीं है। ईश्वर या परमेश्वर संसार की सर्वोच्च सत्ता है।
भगवान शब्द संस्कृत के भगवत शब्द से बना है। जिसने पांचों इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है तथा जिसकी पंचतत्वों पर पकड़ है उसे भगवान कहते हैं। भगवान शब्द का स्त्रीलिंग भगवती है। वह व्यक्ति जो पूर्णत: मोक्ष को प्राप्त हो चुका है और जो जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर कहीं भी जन्म लेकर कुछ भी करने की क्षमता रखता है वह भगवान है। परमहंस है।
भगवान को ईश्वरतुल्य माना गया है इसीलिए इस शब्द को ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के रूप में भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, महेष, राम, कृष्ण और बुद्ध आदि सभी ईश्वर नहीं है।
भगवान शब्द का उपयोग विष्णु और शिव के अवतारों के लिए किया जाता है। दूसरा यह कि जो भी आत्मा पांचों इंद्रियो और पंचतत्व के जाल से मुक्त हो गई है वही भगवान कही गई है। इसी तरह जब कोई स्त्री मुक्त होती है तो उसे भगवती कहते हैं। भगवती शब्द का उपयोग माँ दुर्गा के लिए भी किया जाता है। इसे ही भागवत मार्ग कहा गया है।
भगवान (संस्कृत : भगवत्) सन्धि विच्छेद: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ
भ = भूमि
अ = अग्नि
ग = गगन
वा = वायु
न = नीर
भगवान पंच तत्वों से बना/बनाने वाला है।
यह भी जानिए....
भगवान्- ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य- ये गुण अपनी समग्रता में जिस गण में हों उसे 'भग' कहते हैं। उसे अपने में धारण करने से वे भगवान् हैं। यह भी कि उत्पत्ति, प्रलय, प्राणियों के पूर्व व उत्तर जन्म, विद्या और अविद्या को एक साथ जानने वाले को भी भगवान कहते हैं।
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सदा आत्मतत्व में लीन रहने वालों को स्थितप्रज्ञ कहते हैं | ऐसे व्यक्ति भगवान या गुरु में जल्द आकर्षित होतें हैं | ऐसे लोग संसार में अपना हर कर्तव्य निभाते हुए किसी के प्रति आकर्षित नहीं होते | मान अपमान, सुख दुःख, अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति की परवाह किये बिना अपनी कर्तव्य को सही और ईमानदारी मोड देते हैं |
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