Thursday, 21 May 2015

क्या आप जानते हैं भगवान विष्णु के कितने पुत्र थे?


ब्रह्मा के काल में हुए भगवान विष्णु को पालनहार माना जाता है। विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्र भृगु की पुत्र लक्ष्मी से विवाह किया था। शिव ने ब्रह्मा के पुत्र दक्ष की कन्या सती से विवाह किया था। हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के 3 मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों की खाक छानने के बाद पता चलता हैं कि वे लगभग 9500 ईसापूर्व हुए थे। यहां प्रस्तुत है भगवान विष्णु का संक्षिप्त परिचय। 

आनन्द: कर्दम: श्रीदश्चिक्लीत इति विश्रुत:।
ऋषय श्रिय: पुत्राश्च मयि श्रीर्देवी देवता।।- (ऋग्वेद 4/5/6)

नाम : विष्‍णु
वर्णन : हाथ में शंख, गदा, चक्र, कमल
पत्नी : लक्ष्मी
पुत्र : आनंद, कर्दम, श्रीद, चिक्लीत
शस्त्र : सुदर्शन चक्र
वाहन : गरूड़
विष्णु पार्षद : जय, विजय
विष्णु संदेशवाहक : नारद
निवास : क्षीरसागर (हिन्द महासागर)
ग्रंथ : विष्णु ‍पुराण, भागवत पुराण, वराह पुराण, मत्स्य पुराण, कुर्म पुराण।
मंत्र : ॐ विष्णु नम:, ॐ नमो नारायण, हरि ॐ 

प्रमुख अवतार : सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, हंसावतार, हयग्रीव, नील वराह, आदि वराह, श्वेत वराह, कुर्मा, मत्स्य, नर-नारायण, वामन, धन्वंतरि, मोहिनी, गजेन्द्रोधार, कपिल मुनि, दत्तात्रेय, पृथु, परशुराम, व्यास, ‍राम, कृष्ण और कल्की।

विष्णु के प्रकट अवतार :

1. हंसावतार : सनकादि मुनियों के दार्शनिक प्रश्नों का समाधान करने के लिए विष्‍णु ने हंसावतार धारण किया था। उन्होंने मुनियों को वैदिक ज्ञान बताकर दीक्षा प्रदान की थी। हंस रूप विष्णु ने ही शांत नामक दैत्य का वध किया था

2 . आदि वराह अवतार : विष्णु ने कश्यप के पुत्र हिरण्याक्ष का वध करने के लिए वराह रूप धरा था।

3. नृसिंह अवतार : विष्णु ने कश्यप के पुत्र हिरण्यकशिपु का नृसिंह रूप धारण कर वध किया था।

4. मोहिनी अवतार : उन्होंने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों से अमृत कलश को बचाकर देवताओं को दे दिया था।

5. जलंधर : विष्णु ने शिव पुत्र जलंधर का रूप धारण करके वृंदा का सतीत्व खंडित किया था।

6. मोहिनी अवतार : विष्णु ने भस्मासुर को मारने के लिए एक बार फिर उन्होंने मोहिनी रूप धारण किया।

7. कच्छप अवतार : समुद्र मंथन के दौरान जब धरती डोल रही थी, तब उन्होंने कच्छप रूप धारण किया।

8. धन्वंतरि : समुद्र मंथन के दौरान अंत में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे विष्णु जिन्हें भगवान धन्वंतरि कहा गया। भगवान के इस देव रूप ने आयुर्वेद, वेद, आरोग्य, वनस्पति आदि की शिक्षा दी। उनके बाद राजा धन्व के पुत्र धन्वंतरि हुए जिनके केतुमान नामक पुत्र थे। केतुमान के पुत्र का नाम भीमरथ था। भीमरथ के पुत्र का नाम दिवीदास था। दिवीदास का संवरण था जिसने सुदास से युद्ध लड़ा था।

9. हयग्रीव अवतार : विष्णु ने हयग्रीव नामक सोमकासुर को मारने के लिए हयग्रीव का ही रूप धारण किया।

10. मत्स्य अवतार : प्रलयकाल के दौरान मत्स्य रूप धारण कर राजा वैवस्वत मनु को नाव बनाकर सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कहा।

11. गजेन्द्रोधारावतार : हाथी (इंद्रद्युम्न) को मगरमच्छ (हुहू) से बचाने के लिए गजेन्द्रोधारावतार धरण किया।

12. स्वायंभुव मनु के दो पुत्र प्रियवत और उत्तानपाद में से उत्तानपाद के पु‍त्र ध्रुव को विष्णु ने वरदान दिया था।

विष्णु जन्म अवतार का मतलब : भगवान विष्णु ने स्वयं धरती पर प्रत्यक्ष मनुष्य योनि में जन्म लेकर लोगों का उद्धार किया, तो कहीं-कहीं पर उन्होंने उस मनुष्य को शक्ति देकर अपना प्रतिनिधि अवतार बनाया अर्थात जहां साक्षात विष्णु तो नहीं थे लेकिन विष्णु की चेतना या अंश था।

विष्णु जन्म अवतार :
1. सनकादि अवतार : विष्णु ने ब्रह्मा के पुत्रों सनक, सनंदन, सनातन, सनत्कुमार के रूप में जन्म लेकर वेद ज्ञान का प्रकाश फैलाया।

2. नर-नारायण : धर्म की पत्नी रुचि के गर्भ से भगवान विष्णु ने नर और नारायण नामक दो ऋषियों के रूप में जन्म लिया। वे जन्म से तपोमूर्ति थे अतः जन्म लेते ही बदरीवन में तपस्या करने के लिए चले गए। उनकी तपस्या से ही संसार में सुख और शांति का विस्तार होता है।

3. वामनावतार : कश्यप-अदिति के 12 पुत्रों में से एक त्रिविक्रम को भगवान विष्णु का अवतार माना गया जिन्होंने असुर राज बाली से तीन पग में धरती दान में ले ली थी। उन्हें वामन भी कहा गया।

4. परशुराम अवतार : क्रूर राजाओं से समाज को बचाने के लिए और समाज में फिर से वैदिक व्यवस्था लागू करने के लिए विष्णु ने जमदग्नि-रेणुका के पुत्र के रूप में जन्म लिया, जो आगे चलकर परशुराम कहलाए।

5. व्यास अवतार : परशुराम के बाद वेद व्यास के रूप में भगवान ने अवतार लेकर वैदिक ज्ञान का उद्धार किया। (ये वे वेद व्यास नहीं हैं, जो कृष्ण के काल में हुए थे)

5. रामावतार : रावण का वध करने के लिए दशरथ-कौशल्या के पुत्र के रूप में विष्णु ने जन्म लिया।

6. कृष्णावतार : वासुदेव-देवकी के यहां विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लेकर दुनिया को गीता का ज्ञान दिया।

लक्ष्मी के 18 पुत्रों के नाम : भगवती लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्ग कहे गए हैं। इनके नामों का प्रति शुक्रवार जप करने से मनोवांछित धन की प्राप्ति होती है।

*ॐ देवसखाय नम:
*ॐ चिक्लीताय नम:
*ॐ आनन्दाय नम:
*ॐ कर्दमाय नम:
*ॐ श्रीप्रदाय नम:
*ॐ जातवेदाय नम:
*ॐ अनुरागाय नम:
*ॐ सम्वादाय नम:
*ॐ विजयाय नम:
*ॐ वल्लभाय नम:
*ॐ मदाय नम:
*ॐ हर्षाय नम:
*ॐ बलाय नम:
*ॐ तेजसे नम:
*ॐ दमकाय नम:
*ॐ सलिलाय नम:
*ॐ गुग्गुलाय नम:
*ॐ कुरुण्टकाय नम:।

शिव का महेश अवतार : शिव की नगरी में उनकी पत्नी माता पार्वती के एक द्वारपाल थे जिनका नाम था भैरव। उस समय उन्हें माता पार्वती के प्रति आकर्षण हो गया था जिस कारणवश एक दिन उन्होंने माता पार्वती के महल से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। भैरव के इस व्यवहार से माता क्रोधित हो उठीं और उन्होंने उसे धरती पर जन्म लेने का श्राप दे दिया। धरती पर भैरव ने ‘वेताल’ के रूप में जन्म लिया और श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव के अवतार ‘महेश’ व माता पार्वती के अवतार ‘गिरिजा’ की तपस्या की।

शिव का वृषभ अवतार : वृषभ एक बैल था जिसने देवताओं को भगवान विष्णु के क्रूर पुत्रों के अत्याचारों से मुक्त करवाने के लिए पाताल लोक में जाकर उन्हें मारा था।

समुद्र मंथन के पश्चात उसमें से कई वस्तुएं प्रकट हुई थीं जैसे कि हीरे, चंद्रमा, लक्ष्मी, विष, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, अमृत से भरा हुआ पात्र व अन्य वस्तुएं। समुद्र से निकले उस अमृत पात्र के लिए देवताओं व असुरों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था और अंत में वह पात्र असुरों के ही वश में आ गया। इसके पश्चात उस पात्र को पाने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु की मदद ली। विष्णु ‘मोहिनी’ रूप धारण करके असुरों के समक्ष प्रकट हुए। अपनी सुंदरता के छल से वे असुरों को विचलित करने में सफल हुए और अंत में उन्होंने उस अमृत पात्र को पा लिया।

असुरों की नजर से अमृत पात्र को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने मायाजाल से ढेर सारी अप्सराओं की सर्जना की। जब असुरों ने अति सुंदर अप्सराओं को देखा तो वे उन्हें जबर्दस्ती अपने निवास पाताल लोक ले गए। भोग-विलास के पश्चात जब वे अमृत पात्र को लेने के लिए वापस लौटे, तब तक सभी देवता उस अमृत का सेवन कर चुके थे।

इस घटना की सूचना जब असुरों को मिली तो इस बात का प्रतिशोध लेने के लिए उन्होंने देवताओं पर फिर से आक्रमण कर दिया। लेकिन इस बार असुरों की ही हार हुई और वे अपनी जान बचाते हुए पाताल लोक की ओर भाग खड़े हुए। असुरों का पीछा करते हुए भगवान विष्णु उनके पीछे पाताल लोक पहुंच गए और वहां सभी असुरों का विनाश कर दिया।

पाताल लोक में भगवान विष्णु द्वारा बनाई गई अप्सराओं ने जब विष्णु को देखा तो वे उन पर मोहित हो गईं और उन्होंने भगवान शिव से विष्णु को उनका स्वामी बन जाने का वरदान मांगा। अपने भक्तों की मुराद पूरी करने वाले भगवान शिव ने अप्सराओं का मांगा हुआ वरदान पूरा किया और विष्णु को अपने सभी धर्मों व कर्तव्यों को भूलकर अप्सराओं के साथ पाताल लोक में रहने के लिए कहा।

विष्णु के पाताल लोक में वास के दौरान उन्हें अप्सराओं से कुछ पुत्रों की प्राप्ति हुई थी लेकिन ये पुत्र अत्यंत दुष्ट व क्रूर थे। अपनी क्रूरता के बल पर विष्णु के इन पुत्रों ने तीनों लोकों के निवासियों को परेशान करना शुरू कर दिया। उनके अत्याचार से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के समक्ष प्रस्तुत हुए व उनसे विष्णु के पुत्रों को मारकर इस समस्या से मुक्त करवाने के लिए प्रार्थना की।

देवताओं की परेशानी को दूर करने के लिए भगवान शिव एक बैल यानी कि ‘वृषभ’ के रूप में पाताल लोक पहुंच गए और वहां जाकर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों को मार डाला।

मौके पर पहुंचे भगवान विष्णु ने जब अपने पुत्रों को मृत पाया तो वे क्रोधित हो उठे और वृषभ से युद्ध करने लगे। युद्ध चलने के कई वर्षों के पश्चात भी दोनों में से किसी को भी किसी प्रकार की हानि न हुई और अंत में जिन अप्सराओं ने विष्णु को अपने वरदान में बांधकर रखा था उन्होंने भी विष्णु को उस वरदान से मुक्त कर दिया। इसके पश्चात जब विष्णु को इन बातों का संज्ञान हुआ तो उन्होंने भगवान शिव की प्रशंसा की।

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