Saturday 21 November 2015

ध्यान क्यों करना चाहिए?


ध्यान क्यों करना चाहिए?
ध्यान में क्या ताकत है?
ध्यान साधना का क्या महत्व है....?

जब100 लोग एक साथ साधना करते है तो उत्पन्न लहरें 5 कि.मी.तक फैलती है और नकारात्मकता नष्ट कर सकारात्मकता का निर्माण करती है।

आईस्टांईन नें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा था के एक अणु के विधटन से लगत के अणु का विधटन होता है, इसीको हम अणु विस्फोट कहते है। यही सुत्र हमारे ऋषि, मुनियों ने हमें हजारो साल पहले दिया था। आज पृथ्वी पर केवल4% लोंग ही ध्यान करते है लेकिन बचे 96% लोंगो को इसका पॉजिटिव इफेक्ट होता है। अगर हम भी लगातार 90 दिनो तक ध्यान करे तो इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे और हमारे परिवार पर दिखाई देगा। अगर पृथ्वी पर 10% लोंग ध्यान करनें लगे तो पृथ्वी पर विद्यमान लगभग सभी समस्याओं को नष्ट करने की ताकत ध्यान में है।

उदारहण के लिए हम बात करे तो। महर्षि महेश योगी जी सन् 1993 में वैज्ञानिकों के समक्ष यह सिद्ध किया था।। हुआ यू की उन्होने वॉशिंगटन डि सी में 4000 अध्यापको को बुलाकर एक साथ ध्यान(मेडिटेशन) करने को कहा और चमत्कारीक परिणाम यह था के शहर का क्राईम रिपोर्ट 50% तक कम हुवा पाया गया।

वैज्ञानिकों को कारण समझ नहीं आया और उन्होनें इसे ``महर्षि इफेक्ट" यह नाम दिया। भाईयों यह ताकत है।।

ध्यान मे। हम हमारे भौतिक और आध्यात्मिक यश को कम से कम श्रम करके अधिक से अधिक साध सकते है।
 ``जरुरत है ध्यान से स्वत: को खोजनें की" यही आत्म साक्षात्कार का मार्ग है।
                                                                                         -अहम् ब्रम्हास्मि
भगबान श्रीकृष्ण ने बतायी ध्यान करने की विधि !!
भागवत में भगवान कृष्ण ने ध्यान यानी मेडिटेशन पर अपने गहरे विचार व्यक्त किए हैं। वैसे  इन दिनों ध्यान फैशन का विषय हो गया है। वैष्णव लोगों ने कर्मकाण्ड पर खूब ध्यान दिया है लेकिन वे ध्यान को केवल योगियों का विषय मानते रहे। लेकिन भागवत में भगवान ने भक्तों के लिए ध्यान को भी महत्वपूर्ण बताया है।उद्धवजी ने प्रभु से पूछा- हे भगवन! आप यह बतलाइए कि आपका किस रूप से, किस प्रकार और किस भाव से ध्यान करें हम लोग।भगवान कृष्ण बोले- भाई उद्धव ! पहले आसन पर शरीर को सीधा रखकर आराम से बैठ जाएं।

हाथों को अपनी गोद में रख लें और दृष्टि अपनी नासिका के अग्र भाग पर जमावे। इसके बाद पूरक, कुंभक और रेचक तथा रेचक, कुंभक और पूरक- इन प्राणायामों के द्वारा नाडिय़ों का शोधन करे। प्रणायाम का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए और उसके साथ-साथ इन्द्रियों को जीतने का भी अभ्यास करना चाहिए। हृदय में कमल नालगत पतले सूत के समान ऊँकार का चिंतन करे, प्राण के द्वारा उसे ऊपर ले जाए। प्रतिदिन तीन समय दस-दस बार ऊँकार सहित प्राणायाम का अभ्यास करे। ऐसा करने से एक महीने के अंदर ही प्राणवायु वश में हो जाता है। मेरा ऐसा स्वरूप ध्यान के लिए बड़ा ही मंगलमय है। मेरे अवयवों की गठन बड़ी ही सुडोल है। रोम-रोम से शांति टपकती है। मुखकमल अत्यंत प्रफुल्लित और सुंदर है।

घुटनों तक लम्बी मनोहर चार भुजाएं हैं। बड़ी ही सुंदर और मनोहर गर्दन है।  मुख पर मंद-मंद मुसकान की अनोखी ही छटा है। दोनों ओर के कान बराबर हैं और उनमें मकराकृत कुण्डल झिलमिल-झिलमिल कर रहे हैं। वर्षाकालीन मेघ के समान श्यामल शरीर पर तीताम्बर फहरा रहा है। श्रीवत्स एवं लक्ष्मीजी का चिन्ह वक्ष:स्थल पर दायें-बायें विराजमान है। हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा एवं पद्म्म धारण किए हुए हैं। गले में कौस्तुभ मणि, अपने-अपने स्थान पर चमचमाते हुए किरीट, कंगन, करधनी और बाजूबंद हैं। मेरा एक-एक अंग अत्यंत सुंदर एवं हृदयहारी है। मेरे इस रूप का ध्यान करना चाहिए और अपने मन को एक-एक अंग में लगाना चाहिए।इस चैतन्य अवस्था में साधक को शरीर और आत्मा के बीच भेदात्मक दृष्टि बनाए रखने में सहायता मिलती है।
आप सभी आर्यजनोँ से अनुरोध है कि इस blog को आवस्य शेयर करे और हिन्दूत्व के प्रचार मे सहयोग प्रदान करेँ...!!!

2 comments:

  1. Muje shant jagah dikhaye.muje samadhi karaye.mera kalyan kate.patnjali namah.shri

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  2. जबतक आत्म तत्व पर नजर नहीं पहुंची तबतक सर्व साधना जूठी। नोंध: साधना अर्थात सांस अन्न से बनते प्राण तत्व पर ध्यान।

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