भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी - भाग 1
से आगे भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण का खूनी इतिहास (भाग-२) । ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ। ५-कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१०) हसन निजामी ने अपने ऐतिहासिक लेख ताज-उल-मासीर में लिखा था, 'कुतुबुद्दीन को अल्लाह ने इस्लाम के शत्रुओं यानी हिन्दुओं-के धर्म के पूर्ण विनाश के लिए नियुक्त किया था, और उसने हिन्दुओं के रक्त से भारत भूमि को भर दिया...उसने मूर्ति पूजकों के सम्पूर्ण विश्व को नर्क की अग्नि में झोंक दिया था...और मन्दिरों और मूर्तियों के स्थान पर मस्जिदें बनवादी थीं।' (ताज-उल-मासीर हसन निजामी अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड २ पृष्ठ २०९) 'कुतुबुद्दीन ने जामा मस्जिद देहली बनवाई और जिन मन्दिरों को हाथियों से तुड़वाया था, उनके सोने और पत्थरों को इस मस्जिद में लगाकर इसे सजा दिया।' (वही पुस्तक पृष्ठ २२२) इस्लाम का कालिंजर में प्रवेश 'मन्दिरों को तोड़कर अल्लाह के स्थान मस्जिदों में रूपान्तरित कर दिया गया और मूर्ति पूजा का नामोनिशान मिटा दिया गया....पचास हजार हिन्दुओं को घेरकर बन्दी बना लिया गया और उनके सामूहिक वध के कारण मैदान लाल हो गया। (उसी पुस्तक में पृष्ठ २३१) 'अपनी तलवार से हिन्दुओं का भीषण विध्वंस कर भारत भूमि को पवित्र इस्लामी बना दिया, और मूर्ति पूजा की गन्दगी और बुराई को समाप्त कर दिया, और सम्पूर्ण देश को मूर्तिपूजा से मुक्त कर दिया, और अपने शाही उत्साह और शक्ति द्वारा किसी भी मन्दिर को खड़ा नहीं रहने दिया।' (वही पुस्तक पृष्ठ २१६-१७)
५-मुहम्मद बख्तियार खिलजी (१२०४-१२०६) बख्तियार खिलजी को हिन्दू/बुद्ध शिक्षा केन्द्रों को खोजने और नष्ट करने में विशेष रुचि थी। नालन्दा की लूट के विषय में मिन्हाज़ ने लिखा था- ' बख्तियार बेहर किले के द्वार पर पहुँचा और हजारों काफिरों एवं विद्यार्थियों को मारकर स्थान को अपने अधिकार में कर लिया। विजेताओं के हाथ लूट का अपार माल हाथ लगा। निवासियों में अधिकांश नंगे-मुड़े हुए सिर वाले ब्राहम्ण थे। उन सभी काफिरों का वध कर दिया गया। वहाँ असंखय पुस्तकें मिलीं और मुसलमानों ने उन्हें देखा और किसी को बुलाकर जानना चाहा कि उनमें क्या लिखा है तो पाया कि वहाँ तो कोई हिन्दू बचा ही नहीं। सभी का वध हो चुका है। जब इस्लाम स्वीकार कर चुके कुछ लोगों को बुलाया तब उनकी समझ में आया कि वह सारा स्थल काफिरों की शिक्षा का बड़ा स्थान है तो सारे स्थल को जलाकर भस्म कर दिया। वहाँ इतनी पुस्तकें थीं कि चार महीनों तक जलती रहीं। (तबाकत-ई-नासिरी, मिन्हाज़-उज़-सिराज, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ ३०६) ७-अलाउद्दीन खिलजी (१२९६-१३१६) खिलजी दरबार के उस समय के मुस्लिम इतिहास लेखक, जियाउद्दीन बरानी ने अपने प्रसिद्ध प्रलेख-तारीख-ई-शाही-में लिखा था, 'सारा गुजरात अलाउद्दीन की सेना का शिकार हो गया और सोमनाथ की मूर्ति, जो मुहम्मद गौरी के गज़नी चले जाने के बाद हिन्दुओं ने पुनः स्थापित कर दी गई थी, को हटाकर दिल्ली ले आया गया और लोगों के पैरों तले कुचले जाने, अपमानित किये जाने के लिए मस्जिदों की सीढ़ियों में लगा दी गई।' (तारीख-ई-फीरोजशाही : जियाउद्दीन बारानी, अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १६३) 'अलाउद्दीन की सेनायें सम्पूर्ण देश के एक क्षेत्र के बाद दूसरे क्षेत्रों में गईं और विनाश किया। वे अपने साथ अधिकाधिक दास, काफिरों को धर्मान्तरित किया और हजारों हिन्दू महिलाओं को पकड़ कर लाये। जिन्हें योद्धाओं के हरम में भेज दिया गया। गाजी लोग पुनः गुजरात गये अब्दुल्ला वस्साफ ने अपने इतिहास प्रलेख-तारीख-ई- वस्साफ-में लिखा था-' उन्होंने कम्बायत को घेर लिया और मुसलमानों ने इस्लाम के लिए पूर्ण जिहाद किया। निर्दयतापूर्वक चारों ओर-दायी और बाईं ओर सारी अपवित्र भूमि पर मूर्तिपूजकों का वध और कत्ल शुरू कर दिये और हिन्दुओं का रक्त मूसलाधार वर्षा की तरह बहा।' (तारीख-ई-वस्साफ अब्दुल्ला वस्साफ अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ४२-४३) लूट और मूर्ति भन्जन जियाउद्दीन बरानी की भाँति अब्दुला वस्साफ ने भी अल्लाउद्दीन द्वारा सोमनाथ की लूट का विस्तृत सजीव विवरण लिखा था। अपने प्रलेख में वस्साफ ने लिखा था- 'उन्होंने सोमनाथ में लगभग बीस हजार सुन्दर सभ्य हिन्दू महिलाओं को बन्दी बना लिया और अनगिनत बच्चों को, जिनकी संख्या कलम भी लिख भी न सके, भी बन्दी बना लिया....संक्षेप में मुहम्मद की सेना ने सम्पूर्ण देश का विकराल विनाश किया, निवासियों के जीवनों को नष्ट किया, शहरों को लूटा; और उनके बच्चों को बन्दी बनाया, बहुत से मन्दिरों का विध्वंस किया गया, मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और पैरों के नीचे रौंदी गईं और हजारों को लोगों ने प्राण बचाने के लिए इस्लाम स्वीकार किया।' प्रसिद्ध सूफी कवि अमीर खुसरु ने लिखा था-' हमारे पवित्र सैनिकों की तलवारों के कारण सारा देश एक काँटों रहित जंगल जैसा हो गया है। हमारे सैनिकों की तलवारों के वारों के कारण काफिर हिन्दू भाप की तरह समाप्त कर दिये गये हैं। हिन्दुओं में शक्तिशाली लोगों को पाँवों तले रोंद दिया गया है। इस्लाम जीत गया है, मूर्ति पूजा हार गई है, दबा दी गई है।
(तारीख-ई-अलाई अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III )
निजामुद्दीन औलिया जो दूर-दूर तक देहली के सूफी चिश्ती के रूप में विख्यात है, के कवि शिष्य, अमीर खुसरु, ने अपने प्रलेख-तारीख-ई-अलाई-में अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत में जिहाद का बड़े आनन्द के साथ विवरण किया है- 'उस समय के खलीफा की तलवार की जीभ, जो कि इस्लाम की ज्वाला की भी जीभ है, ने सारे हिन्दुस्तान के सम्पूर्ण अँधेरे को अपने मार्गदर्शन द्वारा प्रकाश दिया है...दूसरी ओर तोड़े गये सोमनाथ
मन्दिर से इतनी धूल उड़ी जिसे समुद्र भी, भूमि पर नीचें स्थापित नहीं कर सका; दायीं ओर बायीं ओर,
समुद्र से लेकर समुद्र तक हिन्दुओं के देवताओं की अनेकों राजधानियों को, जहाँ जिन्न के समय से
ही काफिरों (हिन्दुओं) की शैतानी बस्तियाँ थी, सेना ने जीत लिया है और सभी कुछ विध्वंस कर दिया गया है। देवगिरी (अब दौलताबाद) में अपने प्रथम आक्रमण के प्रारम्भ द्वारा, सुल्तान ने, मूर्ति वाले मन्दिरों के ध्वंस द्वारा, गैर-मुसलमानों की सारी अपवित्रताओं को समाप्त कर दिया है और उन्हें इस्लाम में दीक्षित किया है ताकि अल्लाह के कानून के प्रकाश की किरणें इन अपवित्र देशों को पवित्र व प्रकाशित करें, मस्जिदों में नमाज़ें हों और अल्लाह की प्रशंसा हो।'
(तारीख-ई-अलाई अमीर खुसरु - अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ८५)
बर्नी ने अपने प्रलेख में आगे लिखा कि- 'सुल्तान ने काजी से पूछा कि इस्लामी कानून में हिन्दुओं की क्या स्थिति है? काज़ी ने उत्तर दिया, 'ये जाजिया (टैक्स) देने वाले लोग हैं और जब आय अधिकारी इनसे चाँदी मांगें तो इन्हें अपनी जान बचाने के लिए पूर्ण विनम्रता, व आदर से सोना देना चाहिए। यदि अफसर इनके मुँह में थूक फेंकें तो इन्हें उसे लेने के लिए अपने मुँह खोल देने चाहिए। इस्लाम की महिमा गाना इनका कर्तव्य है...अल्लाह इन पर घृणा करता है, इसीलिए वह कहता है, 'इन्हें दास बना कर रखो।' हिन्दुओं को नीचा दिखाकर रखना एक धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि हिन्दू पैगम्बर के सबसे बड़े शत्रु हैं और चूंकि पैगम्बर ने हमें आदेश दिया है कि हम इनका वध करें, इनको लूट लें, इनको बन्दी बना लें, इस्लाम में धर्मान्तरित कर लें
या हत्या कर दें (कुरान. ९ : ५)। इस पर अलाउद्दीन ने कहा, 'अरे काजी! तुम तो बड़े विद्वान आदमी हो यह पूरी तरह इस्लामी कानून के अनुसार ही है, कि हिन्दुओं को निकृष्टतम दासता और आज्ञाकारिता के लिए विवश किया जाए...हिन्दू तब तक विनम्र और दास नहीं बनेंगे जब तक इन्हें अधिकतम निर्धन न बना दिया जाए।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही-बारानी अनु. एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ १८४-८५)
बारानी की तारीख-ई-फीरोजशाही के संदर्भ में मोरलैण्ड ने अपने प्रसिद्ध शोध, 'अग्रेरियन सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया' में लिखा है- 'सुल्तान ने इस्लामी विद्वानों से उन नियमों और कानूनों को पूछा,ताकि हिन्दुओं को पीसा जा सके, सताया जा सके, और उनकी सम्पत्ति और अधिकार, सब छीना जा सके।'
(मोरलैण्ड-दी ऐग्रेरियान सिस्टम इन मुस्लिम इण्डिया एण्ड दी देहली सुल्तनेट, भारतीय विद्या भवन द्वितीय आवृत्ति पृष्ठ २४)
इस सन्दर्भ में बारानी ने लिखा कि जिन हिन्दुओं ने अल्लाह का धर्म इस्लाम स्वीकार नहीं किया अलाउद्दीन ने उन्हें यातनाएँ देकर कत्ल करा दिया और उनके आश्रितों की दशा इतनी हीन, पतित और कष्ट युक्त बना दी थी, और उन्हें इतनी दयनीय दशा में पहुँचा दिया था, कि उनकी महिलाएं और बच्चे मुसलमानों के घर भीख माँगने के लिए विवश थे।'
(तारीख-ई-फीरोजशाही और फ़तवा-ई-जहानदारी : एलियट और डाउसन, खण्ड III)
सभी मुस्लिम शासकों के लिए दास हिन्दुओं की क्रय- विक्रय सरकारी आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत था। किन्तु खिलजियों और तुगलकों के काल में हिन्दुओं पर इन यातनाओं का स्वरूप गगन चुम्बी एवं अधिकतम हो गया था। अमीर खुसरु ने बताया- 'तुर्क जब चाहते थे हिन्दुओं को पकड़ लेते, क्रय कर लेते अथवा बेच देते थे और उनकी महिलाओं को सुल्तान और उसके अफसरों या सिपहसालारों के हरम में भेज दिया जाता था।
इन यातनाओं से बचने के लिए मस्जिदों के बाहर मुसलमान बनने के लिए हिन्दुओं की कतारें हमेशा लगी ही रहती थी।
(अमीर खुसरु : नूर सिफर : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५६१)
बरनी ने आगे लिखा कि ' घर में काम अाने वाली वस्तुएँ जैसे गेहूँ, चावल, घोड़ा और पशु आदि के मूल्य जिस
प्रकार निश्चित किये जाते हैं, अलाउद्दीन ने बाजार में हिन्दू दासों के मूल्य भी निश्चित कर दिये। एक हिन्दू लड़के का विक्रय मूल्य २०-३० तन्काह तय किया गया था। दास लड़कों का उनके कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकरण किया जाता था। काम करने वाली लड़कियों का मानक सौंदर्य था। अच्छी दिखने वाली स्वस्थ यौवनशील लड़की का मूल्य २०-४० तन्काह, और सुन्दर उच्च परिवार की लड़की का मूल्य एक हजार से लेकर दो हजार तन्काह होता था।'
(बरानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III ,हिस्ट्री ऑफ खिलजीज़, के. एस. लाल, पृष्ठ ३१३-१५)
८-मुहम्मद बिन तुगलक (१३२६-१३५१)
भारत के वामपंथी इतिहासकारों ने, बिन तुगलक का एक सदभावना युक्त अर्धविक्षिप्त, उदार और सुधारक के रूप में बहुत लम्बे काल से, स्वागत किया है, प्रशंसा की है। नेहरूवादी प्रतिष्ठान कांग्रेस ने तो देहली की एक प्रसिद्ध सड़क का नाम भी उसकी स्मृति में तुगलक रोड रख दिया। किन्तु एक विश्व-प्रसिद्ध भ्रमणकर्ता, अफ्रीकी यात्री, इब्न बतूता, जिसने तुगलक के दरबार को देखा था, ने तुगलक के राज्य के कुछ दृश्यों के बारे में लिखा। सुल्तान से अपनी पहली भेंट के संदर्भ में, बतूता ने लिखा था, ५००० दीनार के मूल्य के गाँव, एक घोड़ा,
दस हिन्दू महिला दासियाँ और ५०० दीनार मुझे अनुदान स्वरूप मिले।
(इब्न बतूता : अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८६)
हिन्दुओं को दास बनाने के काम के कारण बिन तुगलक इतना बदनाम हो गया था कि उसकी ख्याति दूर-दूर
चारों ओर फैल गई थी कि इतिहास अभिलेखक शिहाबुद्दीन अल-उमरी ने अपने अभिलेख, 'मसालिक-उल-अब्सर में उसके विषय में इस प्रकार लिखा था-' सुल्तान गैर-मुसलमानों (हिन्दुओं) पर युद्ध करने के अपने सर्वाधिक उत्साह में कभी भी, कोई, कैसी भी कमी नहीं करता था...हिन्दू बन्दियों की संख्या इतनी अधिक थी कि प्रतिदिन अनेकों हजार हिन्दू दास बेच दिये जाते थे।'
(मसालिक-उल-अब्सार : एलियट और डाउसन, खण्ड III पृष्ठ ५८०)
मुस्लिम हाथों में हिन्दू महिलाओं का उपयोग या तो काम तृप्ति के लिए था या विक्रय कर धन कमाने के लिए था। अल-उमरी आगे और कहता है। 'दासों के मूल्यों में कमी होने पर भी युवा हिन्दू लड़कियों के मूल्य बढ़े रहते थे।
(उसी पुस्तक में पृष्ठ ५८०-८१)
इस सन्दर्भ में सुल्तान द्वारा हिन्दुओं को दास बनाये जाने का इब्नबतूता का प्रत्यक्ष दर्शी वर्णन इस प्रकार है- ' सर्वप्रथम युद्ध के मध्य बन्दी बनाये गये, काफिर राजाओं की पुत्रियों को अमीरों और महत्वपूर्ण विदेशियों को उपहार में भेंट कर दिया जाता था। इसके पश्चात अन्य काफिरों की पुत्रियों को...सुल्तान अपने भाइयों व सम्बन्धियों को दे देता था।'
(तुगलक कालीन भारत, एस. ए.रिज़वी, भाग १, पृष्ठ १८९)
हिन्दू सिरों का शिकार
अन्य राजाओं की भाँति बिन तुगलक भी शिकार को जाया करता था। वह शिकार होती था हिन्दू सिरों का।
इस विषय में इब्नबतूता ने लिखा था- ' तब सुल्तान शिकार के अभियान के लिए बारान गया जहाँ उसके आदेशानुसार सारे हिन्दू देश को लूट लिया गया और विनष्ट कर दिया गया। हिन्दू सिरों को एकत्र कर लाया गया और बारान के किले की चहारदीवारी पर टाँग दिया गया।'
(इब्न बतूता : एलियट और डाउसन, खण्ड II पृष्ठ २४२)
९-फिरोज़ शाह तुग़लक (१३५७-१३८८)
फिरोजशाह तुगलक के शासन का वर्णन चार भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक अभिलेखों में लिखा गया है। वे अभिलेख हैं- १. तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्दीन बारानी, २. तारीख-ई-फिरोजशाही, सिराज अफीफ, ३.
सिरात-ई-फिरोजशाही, फरिश्ता, ४. फुतूहत-ई-फिरोजशाही, फीरोजशाह तुगलक स्वयं।हिन्दू महिलाओं का हरम या ज़नानखाना काम तृप्ति के लिए हिन्दू महिलाओं के दासी बनाये जाने के विषय में बारानी ने लिखा था- 'फिरोजशाह के लिए, व्यापक एवम् विविध वर्गों की पकड़ी गई हिन्दू महिलाओं के जनानखानों में नियमित रूप से जाना उसकी दिनचर्या का हिस्सा था।'
(तारीख-ई-फिरोजशाही, जिआउद्दीन बारानी, एलियट और डाउसन, खण्ड III)
ताजरीयत-अल-असर के अनुसार 'मुस्लिम आक्रमणकर्ताओं द्वारा भगाई हुई हिन्दू महिलाओं के साथ मात्र शील भंग ही नहीं किया जाता था वरन उनके साथ अनुपम, अवर्णनीय यातनायें भी दी जाती थीं जैसे लाल गर्म लोहे की सलाखों को हिन्दू महिलाओं की योनियों में बलात घुसा देना, उनकी योनियों को सिल देना, और उनके
स्तनों को काट देना।'
बंगाल में नर संहार
'बंगाल में हार के बदले के लिए, फीरोजशाह ने आदेश दिया कि असुरक्षित बंगाली हिन्दुओं का अंग भंग कर
वध कर दिया जाए। अंग भंग किये गये प्रत्येक हिन्दू के ऊपर इनाम स्वरूप एक चाँदी को टंका दिया जाता था। हिन्दू मृतकों के कटे हुए अंगों की गिनती की गई जो १,८०,००० निकले'
(बारानी, उसी पुस्तक में)
ज्वालामुखी मंदिर का विनाश
फरिश्ता ने आगे लिखा- 'सुल्तान ने ज्वालामुखी मन्दिर की मूर्तियों को तोड़ दिया, उसके टुकड़ों को वध की गई गउओं के मांस में मिला दिया और मिश्रण को तोबड़ों में भरवा कर ब्राहम्णों की गर्दनों में बँधवा दिया, और प्रमुख मूर्ति को मदीना भेज दिया।'
(उसी पुस्तक में)
उड़ीसा का विध्वंस
सिरात-ई-फीरोजशाही में फरिश्ता ने लिखा- 'फिरोज़शाह, पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में, घुसा, मूर्ति को उखाड़ा और अपमान कारक स्थान पर रखने के लिए देहली ले गया। पुरी के पश्चात् फीरोजशाह समुद्रतट के निकट चिल्का झील की ओर गया। सुल्तान ने उस पूरे टापू को हिन्दुओं के वध द्वारा उत्पन्न रक्त से रक्त हौज बना दिया। हिन्दू महिलाओं को काम तृप्ति के लिए पकड़कर ले जाया गया, गर्भवती महिलाओं का पहले शील भंग किया गया फिर उनमें से कुछ की आँते निकालकर वध कर दिया गया ।'
(सीरात-ई-फिरोजशाही फरिश्ता)
इस संदर्भ में यह लिखने योग्य है कि एक अन्य महत्वपूर्ण सड़क और दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम का नाम इसी गाजी फिरोज़शाह को सम्मान देने के लिए नेहरू ने इसके के नाम पर रखा है।
पहला भाग यहाँ है भारत में इस्लामी आक्रमण एवं धर्मान्तरण की खूनी कहानी - 1
to be continued ..in part-3
नोट- इन ऐतिहासिक वर्णनों में एक शब्द भी मेरा नहीं है। ये पूरा वर्णन खुद इन सुल्तानों के नजदीकी इतिहास लेखकों का है जो इनकी विजयों को लेखनबद्ध करने के लिए हमेशा इनके साथ ही रहा करते थे। जिन्हें बाद में एलियट और डाउसन ने अपनी पुस्तक "The history of India as told by its own historians" में अनुवाद किया था।
अपनी पुस्तक के लोकार्पण के समय दोनों ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि इन अमानवीय अत्याचारों के अनुवाद के दौरान उन्हें कई दिनों तक नींद नहीं आयी और कई बार वो रो पड़े थे।
दोस्तों आपको ये ब्लॉग कैसा लगता है। कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजियेगा। जिससे मुझे प्रोत्साहन मिलता रहे।
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