Sunday, 26 April 2015

ईश्वर सत्य है + सत्य ही शिव है + शिव है सुंदर है -

भगवान भोले का पशुपतिनाथ मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के किनारे स्थित है। पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण सोमदेव राजवंश के पशुप्रेक्ष ने तीसरी सदी ईसा पूर्व में कराया था।
पशुपति नाथ मंदिर करीब एक मीटर ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है। चौकोर मंदिर का अधिकतर हिस्सा लकड़ी का बना है, जिसके चार दरवाजे हैं। इसके ऊपर सिंह की प्रतिकृति भी स्थापित है। मुख्य मंदिर में भैंस के रूप में भगवान शिव के शरीर का अगला हिस्सा भी है। आज नेपाल भूकंप जिस तरह की प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है, ठीक उसी तरह साल 2013 में उतराखंड भयानक बाढ़ से जूझ रहा था। लेकिन जिस तरह उत्तराखंड में आई बाढ़ भगवान भोलेनाथ के केदारनाथ धाम को नुकशान नहीं कर पाई थी, ठीक उसी तरह नेपाल में आया भयानक भूकंप भी भोलेनाथ के पशुपतिनाथ मंदिर का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। भगवान भोलेनाथ के दोनों महत्वपूर्ण धाम इतनी भयानक प्राकृतिक आपदाओं से कैसे बच गए। हम आपको बता दें कि इन दोनों ही मंदिरों की जड़ें एक ही हैं। 

पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं।
केदारनाथ में जल तांडव में भी ज्योतिलिंग महादेव ज्योति रूप वही अखंड बिराज मान है.

ये ही है भगवान के सत्य का प्रमाण .....

पशुपतिनाथ चतुर्मुखी शिवलिंग चार धामों और चार वेदों का प्रतीक माना जाता है। भगवान पशुपतिनाथ के चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। हर एक मुख अलग-अलग गुण प्रकट करता है। पहला मुख दक्षिण की ओर अघोर मुख है, दूसरा पूर्व मुख को तत्पुरुष कहते हैं, तीसरा उत्तर मुख अर्धनारीश्वर रूप है, चौथा पश्चिमी मुखी को सद्योजात कहा जाता है और पांचवां ऊपरी भाग ईशान मुख कहा जाता है। यह निराकार मुख है और यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख है।

भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर भारत से ही नहीं दुनिया के हर कोने से लोग इस मंदिर को देखने और भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद पशुपतिनाथ के दर्शन करना जरुरी है।

जो सनातनी हिन्दुओने पूर्व मुग़ल लुटेरों के आगे सरणागति स्वीकारी धर्म परिवर्तन किया है उसे आज समज ना चाहिए की हमने क्या खोया है …।
जिसके पास सत्य की पहचान नहीं उसका भविष्य अंधकारमय है।

ईश्वर सत्य है + सत्य ही शिव है + शिव है सुंदर है ......

हर हर महादेव ……
ॐ नम: शिवाय ……

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