Sunday 26 April 2015

कट्टर मुस्लिम बादशाह अकबर का घमंड इस मन्दिर में आकर टूटा -

क्या आप जानते हैं कि कट्टर मुस्लिम बादशाह अकबर का घमंड इस मन्दिर में आकर टूटा, यह 1542 से 1605 के मध्य का समय था तब अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानु भक्त माता ज्वाला जी का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। फिर अकबर ध्यानू भक्त के साथ इस मन्दिर में आया और यहाँ बिना घी तेल बाती के जलती नौ जोतें देख कर हैरान हुआ और उन्हें बुझाने के लिए के नहर का पानी इन जोतों पर डलवाया, उसके बाद भी ये जोतें न बुझी ,इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का सवा मण का भारी छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक वैज्ञानिकों को भी समझ नही आई है। अपने छत्र की हालत देख अकबर का घमंड टूटा और वो श्रधा से एक छोटा सोने का छत्र लेकर आया. अकबर पहला बड़ा छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है। मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। मंदिर में अलग-अलग नौ ज्योतियां है जिसे अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसमें ज्वाला माता का एक शयन कक्ष भी है जिस के बारे में कहा जाता है कि ज्वाला माँ हर रात्रि इस कक्ष में शयन करती हैं और वास्तव में एक आश्चर्यजनक बात देखने को मिलती है कि यहाँ सांयकाल की शयन आरती के बाद माता की सेज सज़ा कर उसके पास एक पानी का लोटा और एक दांतून रखी जाती है और फिर शयन कक्ष के द्वार सुबह तक बंद कर दिए जाते हैं , फिर जब सुबह द्वार खोले जाते हैं तो सेज की चादर पर सिलवटें मिलती हैं और दान्तुन भी की हुई मिलती है. के लिए थोडा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। इस मे एक पानी का एक कुन्द (KUND) है जो देख्नने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे एकदम गरम नही है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवो द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है।ज्वालाजी में नवरात्रि के समय में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। साल के दोनों नवरात्रि यहां पर बडे़ धूमधाम से मनाये जाते है। नवरात्रि में यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती है। इन दिनों में यहां पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। अखंड देवी पाठ रखे जाते हैं और वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हवन इत्यादि की जाती है। नवरात्रि में पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां पर आकर देवी की कृपा प्राप्त करते है। कुछ लोग देवी के लिए लाल रंग के ध्वज भी लाते है।मंदिर में आरती के समय अद्भूत नजारा होता है। मंदिर में पांच बार आरती होती है। एक मंदिर के कपाट खुलते ही सूर्योदय के साथ में की जाती है। दूसरी दोपहर को की जाती है। आरती के साथ-साथ माता को भोग भी लगाया जाता है। फिर संध्या आरती होती है। इसके पश्चात रात्रि आरती होती है। इसके बाद देवी की शयन शय्या को तैयार किया जाता है। उसे फूलो और सुगंधित सामग्रियों से सजाया जाता है। इसके पश्चात देवी की शयन आरती की जाती है जिसमें भारी संख्या में आये श्रद्धालु भाग लेते है। जब अवसर मिले यहाँ अवश्य जा कर देखें I

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