हिन्दू धर्म की 15 कहानियां, जानना जरूरी - भाग 1 से आगे
3. बाली-वामन : महाबली बाली अजर-अमर है। कहते हैं कि वो आज भी धरती पर रहकर देवताओं के विरुद्ध कार्य में लिप्त है। पहले उसका स्थान दक्षिण भारत के महाबलीपुरम में था लेकिन मान्यता अनुसार अब मरुभूमि अरब में है जिसे प्राचीनकाल में पाताल लोक कहा जाता था। अहिरावण भी वहीं रहता था। समुद्र मंथन में उसे घोड़ा प्राप्त हुआ था जबकि इंद्र को हाथी। उल्लेखनीय है कि अरब में घोड़ों की तादाद ज्यादा थी और भारत में हाथियों की।
शिवभक्त असुरों के राजा बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। वह मानता था कि देवताओं और विष्णु ने उसके साथ छल किया। हालांकि बाली विष्णु का भी भक्त था। भगवान विष्णु ने उसे अजर-अमर होने का वरदान दिया था। हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बाली का जन्म हुआ। बाली जानता था कि मेरे पूर्वज विष्णु भक्त थे, लेकिन वह यह भी जानता था कि मेरे पूर्वजों को विष्णु ने ही मारा था इसलिए बाली के मन में देवताओं के प्रति द्वेष था। उसने शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं को खदेड़ दिया था। वह तीनों लोक का स्वामी बन बैठा था।
देवताओं के कहने पर वामन रूप विष्णु ने दानवीर बाली के समक्ष ब्राह्मण रूप में उपस्थित होकर उससे तीन पग भूमि मांग ली थी। वामन ने दो पग में तीनों लोक नापकर पूछा, अब तीसरा पग कहां रखूं तो बाली ने कहा कि प्रभु अब मेरा सिर ही बचा है आप इस पर पग रख दें। बाली के इस वचन को सुनकर और उसकी दानवीरता को देखते हुए भगवान वामन ने उनको पाताल लोक का राजा बनाकर अमरता का वरदान दे दिया। इस तरह इंद्र और अन्य देवताओं को फिर से स्वर्ग का साम्राज्य मिल गया था।
4. इन्द्र-बाली (समुद्र मंथन) : समुद्र मंथन की कथा सभी जानते हैं। राजा बाली के हाथ से जब वामन के दान के कारण स्वर्ग का राज्य चला गया, तब कुछ काल बाद एक घटना घटी। दुर्वासा ऋषि की पारिजात पुष्पमाला का इंद्र ने उचित सम्मान नहीं किया तो इससे रुष्ट होकर उन्होंने इंद्र को श्रीहीन होकर स्वर्ग से वंचित होने का श्राप दे डाला। यह समाचार लेकर लेकर शुक्राचार्य दैत्यराज बाली के दरबार में पहुंचते हैं। वे दैत्यराज बाली को कहते हैं कि इस अवसर का लाभ उठाकर असुरों को तुरंत आक्रमण करके स्वर्ग पर अधिकार कर लेना चाहिए। ऐसा ही होता है। दैत्यराज बाली स्वर्ग पर आक्रमण का देवताओं को वहां से खदेड़ देता है।
इधर, असुरों से पराजित देवताओं की दुर्दशा का समाचार लेकर नारद ब्रह्मा के पास जाते हैं और फिर नारद सहित सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास पहुंच जाते हैं। भगवान विष्णु सभी को लेकर देवादिदेव महादेव के पास पहुंच जाते हैं। सभी निर्णय लेते हैं कि समुद्र का मंथन कर अमृत प्राप्त किया जाए और वह अमृत देवताओं को पिलाया जाए जिससे कि वे अमर हो जाएं और फिर वे दैत्यों से युद्ध लड़ें।
5. वैवस्वत मनु : मत्स्य पुराण में उल्लेख है कि सत्यव्रत नाम के राजा एक दिन कृतमाला नदी में जल से तर्पण कर रहे थे। उस समय उनकी अंजुलि में एक छोटी सी मछली आ गई। सत्यव्रत ने मछली को नदी में डाल दिया तो मछली ने कहा कि इस जल में बड़े जीव-जंतु मुझे खा जाएंगे। यह सुनकर राजा ने मछली को फिर जल से निकाल लिया और अपने कमंडल में रख लिया और आश्रम ले आए।
रातभर में वह मछली बढ़ गई। तब राजा ने उसे बड़े मटके में डाल दिया। मटके में भी वह बढ़ गई तो उसे तालाब में डाल दिया। और तब अंत में सत्यव्रत ने जान लिया कि यह कोई मामूली मछली नहीं है, जरूर इसमें कुछ बात है, तब उन्होंने उसे ले जाकर समुद्र में डाल दिया। समुद्र में डालते समय मछली ने कहा कि समुद्र में मगर रहते हैं मुझे वहां मत छोड़िए, लेकिन राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे कोई मामूली मछली नहीं जान पड़ती है। आपका आकार तो अप्रत्याशित तेजी से बढ़ रहा है। बताएं कि आप कौन हैं?
तब मछली रूप में भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि आज से 7वें दिन प्रलय (अधिक वर्षा से) के कारण पृथ्वी समुद्र में डूब जाएगी, तब मेरी प्रेरणा से तुम एक बहुत बड़ी नौका बनाओ और जब प्रलय शुरू हो तो तुम सप्त ऋषियों सहित सभी प्राणियों को लेकर उस नौका में बैठ जाना तथा सभी अनाज उसी में रख लेना। अन्य छोटे-बड़े बीज भी रख लेना। नाव पर बैठकर लहराते महासागर में विचरण करना।
प्रचंड आंधी के कारण नौका डगमगा जाएगी, तब मैं इसी रूप में आ जाऊंगा। तब वासुकि नाग द्वारा उस नाव को मेरे सींग में बांध लेना। जब तक ब्रह्मा की रात रहेगी, मैं नाव समुद्र में खींचता रहूंगा। उस समय जो तुम प्रश्न करोगे मैं उत्तर दूंगा। इतना कह मछली गायब हो गई।
राजा तपस्या करने लगे। मछली का बताया हुआ समय आ गया। वर्षा होने लगी। समुद्र उमड़ने लगा। तभी राजा ऋषियों, अन्न, बीजों को लेकर नौका में बैठ गए। और फिर भगवानरूपी वही मछली दिखाई दी। उसके सींग में नाव बांध दी गई और मछली से पृथ्वी और जीवों को बचाने की स्तुति करने लगे। मछलीरूपी विष्णु ने उसे आत्मतत्व का उपदेश दिया। मछलीरूपी विष्णु ने अंत में नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। नाव में ही बैठे-बैठे प्रलय का अंत हो गया।
यही सत्यव्रत वर्तमान में महाकल्प में विवस्वान या वैवस्वत (सूर्य) के पुत्र श्राद्धदेव के नाम से विख्यात हुए, वही वैवस्वत मनु के नाम से भी जाने गए। माना जाता है कि राजा बाली के लगभग 3500 वर्ष बाद धरती पर जलप्रलय हुआ था। जलप्रलय के बाद धीरे-धीरे जल उतरने लगा और... त्रिविष्टप (तिब्बत) या देवलोक से वैवस्वत मनु (6673 ईसा पूर्व) के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरू प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परंपरा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र और इला नाम की कन्या थी।
वैवस्वत मनु के काल के प्रमुख ऋषि- वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, कण्व, भारद्वाज, मार्कंडेय, अगस्त्य आदि। वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में 5 तरह के विभाजन थे- देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। दरअसल ये 5 तरह की मानव जातियां थीं। प्रारंभ में ये सभी जातियां हिमालय से सटे क्षेत्रों में ही रहती थीं फिर धीरे-धीरे वहां से नीचे फैलने लगीं।
6. इक्ष्वाकु : वस्वत मनु के बाद इक्ष्वाकु हिन्दू धर्म के इतिहास में मील का पत्थर है। इनकी कहानी को जानना जरूरी है। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे- 1. इल, 2. इक्ष्वाकु, 3. कुशनाम, 4. अरिष्ट, 5. धृष्ट, 6. नरिष्यंत, 7. करुष, 8. महाबली, 9. शर्याति और 10. पृषध। राजा इक्ष्वाकु के कुल में जैन और हिन्दू धर्म के महान तीर्थंकर, भगवान, राजा, साधु-महात्मा और सृजनकारों का जन्म हुआ है।
इक्ष्वाकु के पुत्र और उनका वंश : मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु के 3 पुत्र हुए- 1. कुक्षि, 2. निमि और 3. दण्डक। इक्ष्वाकु के प्रथम पुत्र कुक्षि अयोध्या के राजा थे जिनके कुल में राम हुए। इक्ष्वाकु के दूसरे पुत्र निमि मिथिला के राजा थे जिनके कुल में राजा जनक हुए। राजा निमि के गुरु थे- ऋषि वशिष्ठ। निमि जैन धर्म के 21वें तीर्थंकर बनें।वै
7. राजा पृथु : इक्ष्वाकु के वंश में महान सम्राट पृथु हुए। वेन के पुत्र पृथु की कहानी को बहुत कम हिन्दू जानते हैं। स्वयम्भुव मनु के वंशज अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसी पुत्री सुनीथा से हुआ था। वेन उनका पुत्र हुआ। पृथु ने कई महान कार्य किए थे। उनके महान कार्यों के कारण उनको विष्णु का अंशावतार माना गया है। वाल्मीकि रामायण में इन्हें अनरण्य का पुत्र तथा त्रिशंकु का पिता कहा गया है। पृथु की पत्नी का नाम अर्चि था। पृथु के पिता महापापी थे। उनके पाप के कारण वे नरक चले गए थे। पृथु ने उनको नरक से छुड़ाया था।
पृथु भगवान विष्णु के भक्त और धर्मपरायण राजा थे। उन्होंने सरस्वती नदी के तट पर पर 100 यज्ञ किए थे। उस काल में यह क्षेत्र ब्रह्मावर्त प्रदेश कहलाता था। सौवें यज्ञ के समय इंद्र ने उनका अश्व चुरा लिया था। इससे क्रुद्ध होकर पृथु ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा दी थी। ब्रह्मा ने उनको रोका। तब पृथु ने प्रयाग को अपना निवास स्थल बना लिया। अंतिम दिनों में पृथु अर्चि सहित तपस्या के लिए वन में चले गए। पृथु तथा अर्चि के 5 पुत्र हुए थे- विजिताश्व, धूम्रकेश, हर्यक्ष, द्रविण और वृक।
उल्लेखनीय है कि चंद्रवंश में भी एक पृथु हुए हैं, जो वृष्णिवंश के चित्ररथ के पुत्र थे, जो विदुर का भाई था। कृष्ण ने इसे मथुरापुरी के उत्तरी द्वार की रक्षा पर नियुक्त किया था। प्रभास तीर्थ में यादव-वंश के अंत के समय यह भी परस्पर कलह में मारा गया था।
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Bahut achha achhi bate janane ko mil rahi hai. Thank you
ReplyDeleteMuji garv hai ki mai hindi dharma me born hua hun.. jai shree ram..