अज्ञातवास के दौरान माता कुंती रेत के शिवलिंग बनाकर शिवजी की पूजा किया करती थीं तब पांडवों ने पूछा कि आप किसी मंदिर में जाकर क्यों नहीं पूजा करतीं? कुंती ने कहा कि यहां जितने भी मंदिर हैं वे सारे कौरवों द्वारा बनाए गए है, जहां हमें जाने की अनुमति नहीं है इसलिए रेत के शिवलिंग बनाकर ही पूजा करनी होगी।
कुंती का उक्त उत्तर सुनकर पांडवों को चिंता हो चली और फिर उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से उक्त 5 मंदिरों के मुख को बदल दिया गया तत्पश्चात कुंती से कहा कि अब आप यहां पूजा-अर्चना कर सकती हैं, क्योंकि यह मंदिर हमने ही बनाया है।
इन पांचों मंदिर के संबंध में किंवदंती है कि पांडवों ने उक्त पांचों मंदिर को एक ही रात में पूर्व मुखी से पश्चिम मुखी कर दिया था। मालवा और निमाड़ अंचल में कौरवों द्वारा बनाए गए अनेक मंदिरों में से सिर्फ 5 ही मंदिरों को प्रमुख माना गया है। आओ जानते हैं कौन-कौन से हैं ये 5 मंदिर…
ओंकारेश्वर में ममलेश्वर महादेव : यह ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप हैं। एक को ‘ममलेश्वर’ के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर हटकर है। पृथक होते हुए भी दोनों की गणना एक ही में की जाती है।
लिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में इस प्रकार दी गई है- एक बार विंध्य पर्वत ने पार्थिव-अर्चना के साथ भगवान शिव की 6 मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर भूतभावन शंकरजी वहां प्रकट हुए। उन्होंने विंध्य को उनके मनोवांछित वर प्रदान किए। विंध्याचल की इस वर प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषिगण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए। एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का ममलेश्वर पड़ा। दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक होते भी दोनों की सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है।
कर्णेश्वर मंदिर : कर्णेश्वर मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। बताया जाता है कि इस मंदिर में स्थित जो गुफाएं हैं, वे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के अलावा अन्य तीर्थ स्थानों तक अंदर ही अंदर निकलती हैं। गांव के कुछ लोगों द्वारा उक्त गुफाओं को बंद कर दिया गया है ताकि वे सुरक्षित रहें।
मालवांचल में कौरवों ने अनेक मंदिर बनाए थे जिनमें से एक है सेंधल नदी के किनारे बसा यह कर्णेश्वर महादेव का मंदिर। करनावद (कर्णावत) नगर के राजा कर्ण यहां बैठकर ग्रामवासियों को दान दिया करते थे इस कारण इस मंदिर का नाम कर्णेश्वर मंदिर पड़ा।
ऐसी मान्यता है कि कर्ण यहां के भी राजा थे और उन्होंने यहां देवी की कठिन तपस्या की थी। कर्ण रोज देवी के समक्ष स्वयं की आहूति दे देते थे। देवी उनकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर रोज अमृत के छींटें देकर उन्हें जिंदा करने के साथ ही सवा मन सोना देती थीं जिसे कर्ण उक्त मंदिर में बैठकर ग्रामवासियों को दान कर दिया करते थे।
इंदौर के पास देवास जिले में स्थित है कर्णावत नामक गांव। देवास से 45 किलोमीटर दूर चापड़ा जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध हैं, जहां से कुछ ही दूरी पर कर्णावत गांव है।
श्री महाकालेश्वर : मध्यप्रदेश की शिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जैन नगर की गणना सप्त पुरियों में की जाती है। 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक यहां स्थित ज्योतिर्लिंग को महाकालेश्वर कहा जाता है। महाभारत, शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में महाकाल ज्योतिर्लिंग की महिमा का पूरे विस्तार के साथ वर्णन किया गया है।
यहां स्थित शिवलिंग त्रेतायुग से स्थापित है। पहले इस मंदिर का निर्माण कौरवों ने किया था फिर इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने किया। इस शिवलिंग की स्थापना एक यदुवंशी श्रीकर गोप बालक ने की थी।
हनुमानजी ने प्रकट होकर इस गोप को आशीर्वाद दिया था कि तेरे कुल में विष्णु अवतार लेंगे, जहां भगवान विष्णु ने कृष्णावतार लेकर लीलाएं कीं।
सिद्धनाथ महादेव : पुण्य सलिला नर्मदा के किनारे बसे नगर नेमावर के प्राचीन सिद्धनाथ महादेव के मंदिर की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। नेमावर को नर्मदा का नाभि स्थान कहा जाता है। मंदिर नर्मदा तट के पास स्थित छोटी-सी पहाड़ी पर बना है। पहाड़ी के सबसे ऊपर भीम द्वारा बनाया गया एक अधूरा मंदिर भी है। हिन्दू और जैन पुराणों में इस स्थान का कई बार उल्लेख हुआ है। इसे सब पापों का नाश कर सिद्धिदाता तीर्थस्थल माना गया है।
किंवदंती है कि सिद्धनाथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना चार सिद्ध ऋषि सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार ने सतयुग में की थी। इसी कारण इस मंदिर का नाम सिद्धनाथ है। इसके ऊपरी तल पर ओंकारेश्वर और निचले तल पर महाकालेश्वर स्थित हैं। श्रद्धालुओं का ऐसा भी मानना है कि जब सिद्धेश्वर महादेव शिवलिंग पर जल अर्पण किया जाता है तब ‘ॐ’ की प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है।
ऐसी मान्यता है कि इसके शिखर का निर्माण 3094 वर्ष ईसा पूर्व किया गया था। द्वापर युग में कौरवों द्वारा इस मंदिर को पूर्व मुखी बनाया गया था जिसको पांडव पुत्र भीम ने अपने बाहुबल से पश्चिम मुखी कर दिया था। 10वीं और 11वीं सदी के चंदेल और परमार राजाओं ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।
इंदौर से मात्र 130 किमी दूर दक्षिण-पूर्व में हरदा रेलवे स्टेशन से 22 किमी तथा उत्तर दिशा में भोपाल से 170 किमी दूर पूर्व दिशा में स्थित है नेमावर।
बिजवाड़ के बिजेश्वर महादेव : देवास जिले की तहसील कन्नौद में पानीगांव के पास स्थित बिजवाड़ में स्थित बिजेश्वर महादेव मंदिर को भी पांडवकालीन माना जाता है। बिजवाड़ गांव कांटाफोड़ थाना क्षेत्र का गांव है।इस मंदिर का मुख भी पूर्व मुखी न होकर पश्चिम मुखी है।
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