जैसा कि हम जानते हैं कि हिन्दू धर्म में 20 प्रमुख नदियों का जिक्र है। प्रमुख नदियों में से 4 नदियां- सिन्धु, सरस्वती, गंगा और ब्रह्मपुत्र हिमालय से निकलती हैं। शेष इन्हीं नदियों की सहायक नदियां हैं या फिर वे प्रायद्वीपीय नदियां हैं अर्थात जिनका हिमालय की नदियों से कोई संबंध नहीं है। इनमें से सरस्वती अब लुप्त हो गई है। सरस्वती के लुप्त होने के पीछे दो कारण है- प्राकृतिक और मानव की गतिविधि। उसी तरह गंगा यदि मर रही है तो उसके प्राकृतिक कारण कम और मानव की गतिविधियां ज्यादा हैं। कैसे? हम यह आपको बताएंगे।
अखंड भारत की ये प्रमुख नदियां हैं:- 1. सिन्धु, 2. सरस्वती, 3. गंगा, 4. यमुना, 5. गोदावरी, 6. नर्मदा (रेवा), 7. कृष्णा, 8. महानदी (महानंदा, चित्रोत्पला), 9. कावेरी, 10. ताप्ती, 11. सरयू और 12. मेघना, 13. ब्राह्मणी, 14. पेन्नार, 15. माही, 16. साबरमती, 17. शिप्रा, 18. स्वात, 19. कुंभा (काबुल) और 20. किशनगंगा (नीलम)।
सिन्धु की जितनी भी सहायक नदियां हैं, वे सभी पवित्र नदियां मानी जाती हैं। हिन्दुओं की प्रारंभिक सभ्यता सिन्धु, सरस्वती और ब्रह्मपुत्र नदी के पास ही बसी और विकसित हुई थी। उक्त 3 नदियों का धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है। सिन्धु की सभी सहायक नदियां जैसे कि वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा, शुतुद्री, झेलम, चिनाब, रावी, व्यास, सतलुज, गिलगिट, काबुल, स्वात, कुर्रम, टोची, गोमल, संगर आदि नदियों का वेदों में उल्लेख मिलता है।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि लगभग सभी नदियों को प्रदूषित करने में हिन्दू धर्म के लोगों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके बाद गंगा के हत्यारे वे शहर और गांव हैं, जो गंगा के किनारे बसे हैं जैसे हरिद्वार, मुरादाबाद, रामपुर, कन्नौज, कानपुर, भागलपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, ऋषिकेश, पटना, राजशाही आदि।
तीर्थों का अनुशासन खत्म : ढाई हजार किलोमीटर क्षेत्र में फैली गंगा के किनारे छोटे-बड़े 800 तीर्थ हुआ करते थे। इन तीर्थों में रहने, जाने और स्नान आदि करने का अनुशासन था, लेकिन वह अब नहीं रहा। लेकिन पिछले 60 वर्ष में बाजारवाद और आधुनिकता अभिमानी तंत्र ने तीर्थों की उस व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया।
गंगा में स्नान : देशभर से गंगा में स्नान करने लोग आते हैं। कुंभ के दौरान तो लाखों लोग गंगा में डुबकी लगाते हैं। गंगा में स्नान कर सभी अपने पाप धोना चाहते हैं। सिर्फ पापी लोग ही गंगा में स्नान करते हैं। पापियों के पाप धोते-धोते गंगा मैली नहीं, जहरीली हो गई है। ये जितने भी पापी हैं, अपने पाप धोने के साथ गंगा के पानी को गंदा भी कर जाते हैं। नदी के किनारे ही ये अपना मल-मूत्र त्यागते हैं, वहीं भोजन करते हैं और प्लास्टिक, कचरा आदि वहीं फेंककर चल देते हैं।
गंगा की पूजा : गंगा पूजा के नाम पर गंगा में लाखों टन हार-फूल, नारियल आदि फेंक दिया जाता है। पत्तों पर रखकर दीये जलाए जाते हैं और उन्हें भी पानी में बहा दिया जाता है। फिर होती है गंगा आरती। पूरे देश में गंगा का जल बेचा जाता है। लाखों श्रद्धालु गंगा का जल एक छोटे-से लोटे में भरकर ले जाते हैं और अपने घरों में पूजा स्थान पर रखते हैं।
गंगा में मूर्ति और लाश : कई त्योहारों पर हानिकारक रंगों से युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएं गंगा में प्रवाहित कर उसे प्रदूषित किया जाता है। धार्मिक आस्था के चलते कई लोग अपने मृतकों को गंगा में बहा देते हैं। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर से ज्यादा प्रदूषित कचरा हर रोज गिर रहा है।
नाली और नाले का पानी : कुल 138 नाले गंगा में 6087 एमएलडी गंदगी छोड़ते हैं, जिनमें 14 उत्तराखंड, 45 उत्तरप्रदेश, 25 बिहार और 54 नाले पश्चिम बंगाल में हैं। इसके अलावा 764 अति-प्रदूषित औद्योगिक इकाइयां गंगा में गंदगी डाल रही हैं जिसमें 687 उत्तरप्रदेश में हैं।
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश में बहुत-सी बीमारियों का कारण जहर बन चुका गंगाजल है। आज गंगा जल पीने व नहाने के योग्य नहीं रहा। कई वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी फसलों की सिंचाई करने के योग्य भी नहीं है।
कारखानों से फैल रहा गंगा में जहर : सीपीसीबी ने एनजीटी को 956 औद्योगिक इकाइयों की सूची सौंपी थी जिनसे गंगा में प्रदूषण हो रहा है। इन सभी औद्योगिक इकाइयों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। गंगा के किनारे लगे परमाणु बिजलीघर, रासायनिक खाद, शकर के कारखाने और चमड़े के कारखाने जहररूपी अपना औद्योगिक कचरा गंगा में फेंक रहे हैं। मोदी सरकार के आने के बाद भी नहीं यह कचरा फेंका जा रहा है। तत्काल प्रभाव से इन इकाइयों को बंद नहीं किया गया तो जानकार कहते हैं कि मात्र 20 साल में गंगा पूरी तरह से मर जाएगी।
दुर्लभ प्रजातियां खतरे में : इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। जल प्रदूषण और जल की कमी के कारण हजारों दुर्लभ जलचर जंतुओं का जीवन अब खतरे में है।
16 साल में मर जाएगी गंगा : संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट अनुसार गंगा को सदानीरा बनाए रखने वाला हिमनद सिर्फ 16 साल और किसी न किसी तरह जिंदा रहेगा। यह हिमनद धीरे-धीरे पिघलता जा रहा है। उसके बाद यह पूरी तरह लुप्त हो जाएगा। आशय यह है कि गंगोत्री ही सूख जाएगी तो गंगा में वह पानी कहां से आएगा?
सीलिसबर्ग स्थित महर्षि वैदिक इंस्टीट्यूट की चिंता दूसरी तरह की है। इंस्टीट्यूट के कराए गए अध्ययन के मुताबिक गंगा नदी और उसके स्रोत गंगा ग्लेशियर को किसी तरह फिर भी बचा लिया जाए और गंगा नदी बहती रहे। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उसकी तीर्थवत्ता बनी रहे।
पवित्र है गंगा का जल : इसका वैज्ञानिक आधार सिद्ध हुए वर्षों बीत गए। उसके अनुसार नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते अर्थात ये ऐसे जीवाणु हैं, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता है।
भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इसका जल घर में शीशी या प्लास्टिक के डिब्बे आदि में भरकर रख दें तो बरसों तक खराब नहीं होता है और कई तरह के पूजा-पाठ में इसका उपयोग किया जाता है। ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गंगा जल में प्राणवायु की प्रचुरता बनाए रखने की अदभुत क्षमता है। इस कारण पानी से हैजा और पेचिश जैसी बीमारियों का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, लेकिन अब वह बात नहीं रही।
गंगा नदी : पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगीरथी नदी गंगा की उस शाखा को कहते हैं, जो गढ़वाल (उत्तरप्रदेश) में गंगोत्री से निकलकर देवप्रयाग में अलकनंदा में मिल जाती है व गंगा का नाम प्राप्त करती है। ब्रह्मा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था। इससे पहले उनके पूर्वज सगर ने भारत में कई नदी और जलराशियों का निर्माण किया था। उन्हीं के कार्य को भगीरथ ने आगे बढ़ाया। पहले हिमालय के एक क्षेत्र विशेष को देवलोक कहा जाता था।
गंगा का उद्गम : गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। गंगोत्री उत्तराखंड राज्य में स्थित गंगा का उद्गम स्थल है। सर्वप्रथम गंगा का अवतरण होने के कारण ही यह स्थान गंगोत्री कहलाया, किंतु वस्तुत: उनका उद्गम 18 मील और ऊपर श्रीमुख नामक पर्वत से है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा फूटी है। 3,900 मीटर ऊंचा गोमुख गंगा का उद्गम स्थल है। इस गोमुख कुंड में पानी हिमालय के और भी ऊंचाई वाले स्थान से आता है।
यह नदी 3 देशों के क्षेत्र का उद्धार करती है- भारत, नेपाल और बांग्लादेश। नेपाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और फिर बांग्लादेश में घुसकर यह बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
हिमाचल के हिमालय से निकलकर यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है- मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
फिर यह नदी उत्तराखंड के बाद मध्यदेश से होती हुई यह बिहार में पहुंचती है और फिर पश्चिम बंगाल के हुगली पहुंचती है। यहां से बांग्लादेश में घुसकर यह ब्रह्मपुत्र नदी से मिलकर गंगासागर, जिसे आजकल बंगाल की खाड़ी कहा जाता है, में मिल जाती है। इस दौरान यह 2,300 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती है। इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं- सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना।
गंगा की धारा : हिमालय से निकलकर गंगा 12 धाराओं में विभक्त होती है। इसमें मंदाकिनी, भगीरथी, धौलीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। गंगा नदी की प्रधान शाखा भगीरथी है, जो कुमाऊं में हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। यहां गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
गंगा के तट के तीर्थ : गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक गंगा के तट पर हजारों तीर्थ है। गंगा को भारत का हृदय माना जाता है। इसके एक और सिन्धु और सरस्वती बहती है तो दूसरी ओर ब्रह्मपुत्र।
गंगा का योगदान : गंगा अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औषधीय गुणों वाले जल के कारण भारत में हजारों-लाखों वर्षों से पूजी जा रही है। हजारों वर्षों से गंगा देश की प्यास बुझा रही है।
यह कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है तथा अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल जैसे वाराणसी, हरिद्वार और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बांध और नदी परियोजनाएं भारत की बिजली, पानी और कृषि से संबंधित जरूरतों को पूरा करती हैं।
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